Shri Ram Raksha Stotra | श्री रामरक्षा स्तोत्रम्

Shri Ram Raksha Stotra दोस्तों हमारे सनातन हिंदू धर्म में बहुत सारे देवी देवताओं की पूजा पूरे विधि विधान के साथ किया जाता है, और सभी का अलग अलग महत्व है। और जितने भी देवी देवता है उनको पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और अलग फल भी मिलता है। और इसी तरह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान प्रभु श्री राम जी की राम रक्षा स्तोत्र पाठ करने से हमारे मन से भय दूर हो जाता है। और सभी बाधा विघ्न, कष्ट दूर हो जाता है। और भगवान राम की राम रक्षा स्तोत्र की पाठ करने से भगवान राम बहुत प्रसन्न होते है। और सभी दुःख कष्ट से रक्षा करते है। और जो भगवान राम जी का राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता है भगवान राम जी का आशीर्वाद सदैव उनके ऊपर रहता है।

Shri ram raksha stotra

Shri Ram Raksha Stotra | श्री रामरक्षा स्तोत्रम्

“ॐ अस्यश्री रामरक्षा स्तोत्र मन्त्रस्य, बुधकौशिक ऋषि, श्रीसीतारामचन्द्रौ देवता, अनुष्टुप् छन्दः, सीताशक्तिः, श्रीमान् हनुमान् कीळकं, श्रीरामचन्द्र प्रीत्यर्थे रामरक्षा स्तोत्र जपे विनियोगः।”

॥ अथ ध्यानम् II
ध्याये दाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बन्धपद्मासनस्थं पीतंवासो-वसनं नवकमलदल स्पर्धिनेत्र° प्रसन्नम् ।

बामाङ्काऋढसीता मुखकमलमीळ लोचनं नीरदाभं नानाळङ्कारदीफ्त दधतमुरुजटा मण्डलम् रामचन्द्रम् ॥

 

चिरतं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसा महापातक नाशनम्॥ १ ॥

ध्यात्वा नीलोत्पल श्यामं रामं राजीव लोचनम्।
जानकी लक्ष्मणोपेतं जटामुकुट मण्डितम्॥ २ ॥

सासितृण धनुर्बाण पाणिं नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगन्त्रातु माबिर्भूत मजंबिभूम्॥ ३ ॥

रामरक्षा पठेत् प्राज्ञः पापङ्घ्नि सर्वकामदम्।
शिरोमे राघवपातु भालं दशरथात्मजः॥ ४ ॥

कौशल्ययो दृशो पातु विश्वामित्र प्रियः शृतिः।
घ्राणंपातु मखत्राता मुखं सौमित्रि वत्सलः॥ ५ ॥

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरत बन्दित।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भूजै भग्नेश कार्मुकः॥ ६ ॥

कौसीता पतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यंपातु खरध्वंसी नाभिंजाम्भ बदाश्रय॥ ७ ॥

सुग्रीवेशः कटिपातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
उरुः रघुत्तमः पातु रक्षःकूल बिनाशकृत्॥ ८ ॥

जानुनी सेत्कृतपातु जङ्घे दशमुखान्तकः।
पादौ विभीषण श्रीदः पातु रोमाऽखिलं बपुः॥ ९ ॥

एतां राम बलोपेतां रक्षांयः सुकृतोपठेत्।
सचिरायुः सुखीपूत्रो विजयी विनयी भवेत्॥ १० ॥

पाताल भूतल ब्योम चारिण छद्मचारिणः।
न दृष्टु मपिशक्रास्ते रक्षितं रामनामभिः॥ ११ ॥

रामेति रामभेद्रेति रामचन्द्रोति बा स्मरन्।
नरो न लिप्यतेपापै भुक्तिः मूक्तिः च बिन्दति॥ १२ ॥

जगज्जै-त्रैकमन्त्रण रामनाम्ना भिरक्षितम्।
यः कण्ठे धारये त्तस्य करस्था सर्वसिद्धये॥ १३ ॥

बज्रपञ्जर नामेदं योराम कवचं स्मरेत्।
अब्याहताज्ञ सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्॥ १४ ॥

आदिष्ट बा न्यथास्वप्ने रामरक्षा मिमांहरः।
तथा लिक्षितबान्‌प्राप्त प्रवृद्धो बुद्धकौशिकः॥ १५ ॥

आरामः कळ्पवृक्षाणां विराम सकलाप्रदाम्।
अभिराम स्त्रिलोकानां रामश्रीमान् सनःप्रभुः॥ १६ ॥

तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीक विशालाक्षौ चीरकष्णो जिनाम्बरौ॥ १७ ॥

फलमूला शिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पूत्रौ दशरथस्येतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥ १८ ॥

शरणौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनु स्मताम्।
रक्षःकुल निहन्तारौ त्रयेतां नो रघुभमौ॥ १९ ॥

आत्तसज्ज धनुषाबिषु स्पशावक्षयाशु, गनिषङ्ग सङ्गिनौ।
रक्षणायमम राम लक्ष्मणावग्रतः पथिसदैव गच्छताम्॥ २० ॥

सन्नद्ध कबची खड्गी चापवाण धरौ युबा।
गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः॥ २१ ॥

रामो दशरथि शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुस्थः पुरुषः पूर्णः कौशल्येयो रघुत्तमः॥ २२. ॥

बेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः।
जानकी बल्लभः श्रीमान् प्रमेय च्च पराक्रमः॥ २३ ॥

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्नितः।
अश्वमेधादिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशयः॥ २४ ॥

रामं दुर्बादळश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।
स्तुवन्ति नामत्तिर्दिव्यै नते संसारिणो नराः॥ २५ ॥

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं।
काकुस्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्॥

राजेन्द्रं सत्यसन्धं दशरथ तनयं शामलं शान्तमूर्तिं।
बन्दलोकाभि रामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्॥ २६ ॥

रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय बेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥ २७ ॥

श्रीराम राम रघुनन्दन रामराम।
श्रीराम राम भरताग्रज रामराम॥
श्रीराम राम रणकर्कश रामराम ।
श्रीराम राम शरणं भव रामराम॥ २८ ॥

श्रीरामचन्द्र चरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्र चरणौ वचसा गृणामि॥
श्रीरामचन्द्र चरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्र शरशौ शरणं प्रपद्ये॥ २९ ॥

मातारामो मत्पिता रामचन्द्रः।
स्वामिरामो मत्सखा रामचन्द्रः॥
सर्वस्वंमे रामचन्द्रो दयालु ॥
र्नान्यंजाने नैवजाने न जाने॥ ३०॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य बामे च जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्॥ ३१ ॥

लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्र° रघुवंशनाथम्।
काऋण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥ ३२ ॥

मनोजवं मारुततुल्य बेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमत्तां बरिष्टम्।
बातात्मजं बानरयुथमुख्य° श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥ ३३ ॥

कूजन्त° रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे बाल्मीकिकोकिलम्॥ ३४ ॥

आपदा मपहर्त्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥ ३५ ॥

भर्जनं भवबीजानां मर्जनं सुखसम्पदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्॥ ३६ ॥

रामो राजमणिः सदाविजयेते।
रामं रमेशं भजे॥
रामेणा भिहता निशाचरचमू।
रामाय तस्मै नमः॥ ३७ ॥

रामान्नास्ति परायणं परतरं।
रामस्य दासोऽस्महं॥
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे।
भो राम मामुद्धर॥ ३८ ॥

॥ इति श्रीबुधकौशिकबिरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्र सम्पूर्णम् ॥

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