दामोदर अष्टकम् | Damodarastakam

Damodarastakam भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और उनकी बाल लीलाओं का एक अद्भुत स्तोत्र है, जो भक्ति, प्रेम और आध्यात्मिक आनंद का स्रोत है। यह स्तोत्र श्री सत्यव्रत मुनि द्वारा रचित माना जाता है और कार्तिक मास के दौरान इसका पाठ विशेष रूप से शुभ और पुण्यदायक माना गया है।

इस स्तोत्र का नाम ‘दामोदर’ शब्द पर आधारित है, जो भगवान श्रीकृष्ण का एक विशेष नाम है। ‘दाम’ का अर्थ है रस्सी और ‘उदर’ का अर्थ है पेट। दामोदर नाम से भगवान श्रीकृष्ण की उस बाल लीला का स्मरण होता है, जब माता यशोदा ने उन्हें ओखली से बांधा था। इस लीला के माध्यम से भगवान ने न केवल अपनी बाल रूप की मधुरता को प्रकट किया, बल्कि यह भी दिखाया कि वे भले ही अनंत ब्रह्मांड के स्वामी हैं, परंतु प्रेम और भक्ति से बंधे जा सकते हैं।

दामोदर अष्टकम केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच प्रेम का एक गीत है। इसमें भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए उनके मोहक स्वरूप, उनके प्रेममय संबंधों और उनकी करुणा का गुणगान किया गया है। यह स्तोत्र यह सिखाता है कि भगवान का सच्चा स्वरूप भक्ति और प्रेम से ही प्रकट होता है, न कि बाहरी साधनों या सिद्धियों से।

इस स्तोत्र की प्रत्येक पंक्ति में श्रीकृष्ण के अद्वितीय सौंदर्य, बाल लीलाओं और उनकी दयालुता की झलक मिलती है। इसे गाते समय भक्त भगवान की बाल लीलाओं का ध्यान करते हैं और उनके साथ आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

यह स्तोत्र न केवल भक्ति मार्ग पर चलने वालों के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि भगवान प्रेम से पराजित हो जाते हैं। दामोदर अष्टकम भक्ति, समर्पण और दिव्य प्रेम का जीता-जागता उदाहरण है, जिसे गाने और सुनने मात्र से हृदय में परम आनंद का संचार होता है।

Damodarastakam

दामोदर अष्टकम् (Damodarastakam)

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्‌
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या॥ (१)

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्।
मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्॥ (२)

इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥ (३)

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह।
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यैः?॥ (४)

इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै- र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गौप्या।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभैः॥ (५)

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो! प्रसीद प्रभो! दुःख जालाब्धिमग्नम्।
कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः॥ (६)

कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्‌ त्वया मोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च।
तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह॥ (७)

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्॥ (८)

दामोदर अष्टकम् हिंदी अर्थ सहित

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्‌
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या॥ (१)

मैं उन प्रभु का वंदन करता हूं, जो सच्चिदानंदस्वरूप हैं, जिनके कानों में झूमते कुण्डल सुशोभित हैं, और जो गोकुल में अपनी अलौकिक आभा से जगमगा रहे हैं।
मां यशोदा से भयभीत होकर, जो उलूखल (ओखली) से बंधे हुए दौड़ रहे हैं, और जिनके पीछे-पीछे मां यशोदा दौड़ रही हैं।

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्।
मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्॥ (२)

जो भय से रोते हुए अपने नेत्रों को बार-बार मसल रहे हैं और अपने हाथों से आंसुओं को पोंछ रहे हैं।
जिनकी आँखें भयभीत हैं, जिनका गला रोने के कारण फड़क रहा है, और जिनके गले में त्रिपुण्ड जैसा अंकित है, मैं उन भक्तों से बंधे दामोदर को नमन करता हूं।

इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥ (३)

जो अपनी बाल लीलाओं से आनंद के कुण्ड में डुबकी लगाते हुए अपने ग्वाल-बालों के साथ रमण करते हैं।
जो भक्तों के प्रेम से जीते जाते हैं और अपने शरणागत भक्तों पर दया बरसाते हैं, मैं बार-बार उन दामोदर का वंदन करता हूं।

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह।
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यैः?॥ (४)

हे देव! मैं आपसे न तो मोक्ष की इच्छा करता हूं और न ही स्वर्ग में अमरत्व की।
मैं तो केवल यही चाहता हूं कि आपका गोपाल रूप, जो अत्यंत मनोहर है, सदा मेरे मन में विद्यमान रहे।

इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै- र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गौप्या।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभैः॥ (५)

आपका मुखकमल, जो सुगंधित नीले बालों से घिरा हुआ है, और जिसमें स्निग्ध लालिमा झलकती है।
जिसे गोपियां बार-बार चूमती हैं, और जो बिम्ब-फल जैसे लाल होंठों से सुशोभित है, वह रूप मेरे मन में सदा बना रहे।

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो! प्रसीद प्रभो! दुःख जालाब्धिमग्नम्।
कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः॥ (६)

हे दामोदर! हे अनन्त विष्णु! मैं आपको प्रणाम करता हूं। कृपा करके मेरी ओर देखें, जो दुखों के महासागर में डूबा हुआ है।
मुझ पर अपनी कृपा-दृष्टि बरसाएं, जो अज्ञान के अंधकार में डूबा हुआ है।

कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्‌ त्वया मोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च।
तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह॥ (७)

जिन्होंने कुबेर के पुत्रों (नलकूबर और मणिग्रीव) को मुक्त करके उन्हें अपना भक्त बनाया।
वैसे ही, हे प्रभु! कृपा करके मुझे प्रेम-भक्ति प्रदान करें, मुझे मोक्ष की कोई इच्छा नहीं है।

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्॥ (८)

हे दामोदर! मैं आपको प्रणाम करता हूं, जिनकी काया अद्भुत तेज से दीप्तिमान है और जो समस्त संसार के आश्रय हैं।
राधिका, जो आपकी प्रिय हैं, उन्हें मैं प्रणाम करता हूं। हे अनन्त लीलाओं वाले प्रभु! आपको मेरा सादर नमन।

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दामोदर अष्टकम: आध्यात्मिक गहराई और महत्त्व

दामोदर अष्टकम केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि भक्ति का एक गहरा अनुभव है, जो भगवान श्रीकृष्ण के दामोदर रूप को समर्पित है। यह श्री सत्यव्रत मुनि द्वारा रचित है, जो भगवान की बाल लीलाओं और उनके दिव्य प्रेम का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से कार्तिक मास में दीपदान के समय किया जाता है। यह भक्तों को भगवान के सान्निध्य का अनुभव कराता है और उनके भीतर शांति और दिव्यता का संचार करता है।

दामोदर अष्टकम से जुड़ी आध्यात्मिक बातें

1. दामोदर नाम का महत्त्व
‘दामोदर’ नाम भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला से जुड़ा हुआ है। माता यशोदा ने उन्हें शरारतों के कारण ओखली से बांध दिया था। ‘दाम’ का अर्थ रस्सी और ‘उदर’ का अर्थ पेट है। यह नाम भगवान की उस अवस्था को दर्शाता है, जब वे अनंत शक्तियों के स्वामी होने के बावजूद अपनी माता की भक्ति और प्रेम से बंधे हुए थे।

2. भक्ति का चरम रूप
दामोदर अष्टकम यह सिखाता है कि भगवान को केवल प्रेम और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है। इसमें सांसारिक साधनों, ज्ञान, या वैभव का कोई महत्त्व नहीं है। यहां तक कि अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी भगवान भी सच्चे प्रेम और समर्पण के आगे झुक जाते हैं।

3. भगवान की लीलाओं का वर्णन
इस अष्टकम में भगवान श्रीकृष्ण के रूप, बाल लीलाओं और उनकी करुणा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भगवान के दैवीय स्वरूप और उनके मानवीय संबंधों को एक साथ प्रस्तुत करता है। भगवान का रोना, यशोदा का उन्हें पकड़ना, और उनकी गर्दन पर रस्सी के निशान – यह सब दिखाते हैं कि भगवान अपने भक्तों के प्रेम से कितने सहज हैं।

4. कार्तिक मास में विशेषता
कार्तिक मास को भक्ति का राजा कहा जाता है, और दामोदर अष्टकम का पाठ इस मास में विशेष फलदायक माना गया है। दीप जलाकर इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, और उसे भगवान का अनुग्रह प्राप्त होता है।

दामोदर अष्टकम का आध्यात्मिक संदेश

प्रेम से बंधे भगवान: दामोदर अष्टकम यह दिखाता है कि भगवान शक्ति और सामर्थ्य से नहीं, बल्कि प्रेम और समर्पण से जीते जाते हैं।

सांसारिक इच्छाओं से मुक्ति: यह स्तोत्र यह सिखाता है कि सांसारिक इच्छाओं को त्यागकर भगवान के चरणों में मन लगाना चाहिए।

सच्ची भक्ति की शक्ति: कुबेर के पुत्रों (नलकूबर और मणिग्रीव) की मुक्ति की कथा यह दर्शाती है कि भगवान केवल भक्त की भावना देखते हैं, न कि उसके कर्मों का बोझ।

दामोदर अष्टकम का पाठ करने के लाभ

1. पापों का नाश: यह माना जाता है कि दामोदर अष्टकम का पाठ व्यक्ति के सभी पापों को नष्ट कर देता है।

2. शांति और समृद्धि: यह स्तोत्र भक्त के जीवन में मानसिक शांति और आध्यात्मिक समृद्धि लाता है।

3. भगवान की कृपा: इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त भगवान का सान्निध्य प्राप्त करते हैं।

4. मोक्ष की प्राप्ति: यह भक्त को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाता है।

एकता का प्रतीक

दामोदर अष्टकम भगवान के उन स्वरूपों को एक साथ लाता है, जो उनकी भव्यता और उनकी सरलता दोनों को दर्शाते हैं। यह अष्टकम यह सिखाता है कि भगवान हर किसी के हैं – चाहे वह गोपियां हों, ग्वाल-बाल हों, या यशोदा जैसी वात्सल्यमयी माता।

निष्कर्ष

दामोदर अष्टकम केवल एक स्तोत्र नहीं है, बल्कि भक्ति, प्रेम, और समर्पण का जीता-जागता उदाहरण है। यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि भगवान को प्राप्त करने का मार्ग सांसारिक वैभव या ज्ञान नहीं, बल्कि सच्ची भावना और निष्काम भक्ति है।

इसमें वर्णित भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं हमें उनकी दयालुता और प्रेमपूर्ण स्वभाव का स्मरण कराती हैं। दामोदर अष्टकम में छिपा गहरा आध्यात्मिक संदेश हमें अपने अहंकार, सांसारिक इच्छाओं और मोह से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है। यह हमें सिखाता है कि भक्ति का सार प्रेम और समर्पण में है, और यह प्रेम भगवान को भी अपने भक्त के प्रति विवश कर देता है।

कार्तिक मास में इसका पाठ विशेष रूप से शुभ और पवित्र माना जाता है। दीपदान के साथ इसका गान भक्तों को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। यह भगवान के प्रति हमारे प्रेम को प्रगाढ़ करता है और हमारे भीतर आत्मज्ञान का दीप प्रज्ज्वलित करता है।

अंततः, दामोदर अष्टकम भक्ति योग का वह दीपक है, जो हमारे जीवन को प्रकाशित करता है और हमें भगवान श्रीकृष्ण की अनंत कृपा का पात्र बनाता है। यह स्तोत्र हमें यह भी सिखाता है कि भगवान का असली स्वरूप प्रेम में बंधना है, और यही भक्ति का परम लक्ष्य है।

“दामोदर अष्टकम भक्त और भगवान के बीच उस शाश्वत प्रेम की झलक है, जो सांसारिक सीमाओं से परे है और जिसे केवल भक्ति से अनुभव किया जा सकता है।”

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