श्री जगन्नाथ अष्टकम् | Shri Jagannath Ashtakam

श्री जगन्नाथ अष्टकम्: भगवान जगन्नाथ की स्तुति का एक दिव्य स्रोत Shri Jagannath Ashtakam
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Shri Jagannath Ashtakam श्री जगन्नाथ अष्टकम् एक अत्यंत पवित्र और दिव्य स्तोत्र है, जो भगवान जगन्नाथ के अनन्य प्रेम और भक्ति की अभिव्यक्ति है। इस स्तोत्र का रचनाकार आदिशंकराचार्य माना जाता है, जिन्होंने इसे भगवान श्री जगन्नाथ की महिमा का विस्तार से वर्णन करने के लिए रचा। जगन्नाथ अष्टकम् आठ श्लोकों में विभक्त है, जिसमें भगवान जगन्नाथ के रूप, गुण, और लीला का गुणगान किया गया है।

भगवान जगन्नाथ की पूजा मुख्यतः ओडिशा के पुरी में होती है, जहाँ उनकी रथयात्रा (रथ यात्रा) विश्वभर में प्रसिद्ध है। इस स्तोत्र में भगवान जगन्नाथ की दिव्य रूप की चर्चा की जाती है, जिसमें उनके शरीर पर मोरपंख, बांसुरी, और पीताम्बर का वर्णन है। इसके साथ ही, इस स्तोत्र में भगवान की दया, करुणा, और भक्तों के प्रति प्रेम की भी व्याख्या की गई है।

श्री जगन्नाथ अष्टकम् का महत्व और भक्तों के लिए उपहार Shri Jagannath Ashtakam

श्री जगन्नाथ अष्टकम् केवल एक स्तोत्र नहीं है, बल्कि यह एक अद्भुत भक्ति मार्ग है, जो भक्तों को भगवान जगन्नाथ के साथ साक्षात्कार और उनके आशीर्वाद के पात्र बनाता है। इस स्तोत्र के आठ श्लोक भगवान जगन्नाथ के अद्वितीय रूप, उनके कृत्य, और उनके भक्तों के प्रति स्नेहभाव को प्रकट करते हैं।

यह अष्टकम् उन सभी के लिए अत्यंत फलदायी है, जो भगवान जगन्नाथ के दर्शन और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए शुद्ध हृदय से प्रार्थना करते हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से भक्तों के लिए जीवन में शांति, पापों का नाश और भगवान के चरणों में अडिग विश्वास की स्थापना करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यदि इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ा जाए, तो यह भक्त को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।

Shri Jagannath Ashtakam

श्री जगन्नाथ अष्टकम् | Shri Jagannath Ashtakam

कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीत तरलो
मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः
रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥१॥

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्‍-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥२॥

महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे
वसन् प्रासादान्तः सहज बलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रा मध्यस्थः सकलसुर सेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥३॥

कृपा पारावारः सजल जलद श्रेणिरुचिरो
रमा वाणी रामः स्फुरद् अमल पङ्केरुहमुखः ।
सुरेन्द्रैर् आराध्यः श्रुतिगण शिखा गीत चरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥४॥

रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः
स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥५॥

परंब्रह्मापीड़ः कुवलय-दलोत्‍फुल्ल-नयनो
निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि ।
रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सुखो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे ॥६॥

न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं
न याचेऽहं रम्यां सकल जन काम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथ पतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥७॥

हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिम् अपरां यादवपते ।
अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥८॥

जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥९॥

॥ इति श्रीमत् शंकराचार्यविरचितं जगन्नाथाष्टकं संपूर्णम् ॥

श्री जगन्नाथ अष्टकम् हिंदी अर्थ एवं भावार्थ सहित

कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीत तरलो
मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः
रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥१॥

हिंदी अर्थ –
कभी-कभी भगवान श्रीकृष्ण कालिंदी (यमुना) के तट पर, वन में मधुर संगीत का आनंद लेते हुए, प्रसन्नचित्त रहते हैं।
वे गोपियों (गोपिकाओं) के कमल के समान सुंदर मुखकमल के रस का आनंद लेने वाले मधुकर के समान प्रतीत होते हैं।
जिनके चरण कमल लक्ष्मी (रमा), भगवान शिव, ब्रह्मा, इंद्र और गणेश जैसे देवताओं द्वारा पूजित हैं, ऐसे भगवान जगन्नाथ सदा मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हों।

भावार्थ –
यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत रूप और उनकी क्रीड़ाओं का वर्णन करता है। भगवान यमुना के तट पर गोपियों के साथ मधुर संगीत का रसास्वादन करते हैं और देवताओं द्वारा पूजित हैं। भक्त उनके इस दिव्य स्वरूप का दर्शन करके अपनी आत्मा को तृप्त करना चाहते हैं।

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्‍-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥२॥

हिंदी अर्थ –
जिनके बाएं हाथ में बांसुरी (वेणु) सुशोभित है, सिर पर मोर पंख सुशोभित है, और कटि पर पीताम्बर वस्त्र शोभा बढ़ा रहा है।
जिनके नेत्रों के कोने से गोपियों पर स्नेहपूर्ण दृष्टि पड़ती है।
जो सदा श्री वृंदावन में अपनी लीला-कथाओं से प्रसिद्ध हैं।
ऐसे भगवान जगन्नाथ सदा मेरे नेत्रों के सामने प्रकट हों।

भावार्थ –
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत स्वरूप और उनकी वृंदावन की क्रीड़ाओं का वर्णन किया गया है। भगवान का बांसुरी बजाना, मोरपंख धारण करना, और गोपियों पर स्नेहपूर्ण दृष्टि डालना उनकी दिव्यता और प्रेममय स्वरूप को दर्शाता है। भक्त उनकी इस मोहक छवि का दर्शन करने की आकांक्षा करते हैं।

महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे
वसन् प्रासादान्तः सहज बलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रा मध्यस्थः सकलसुर सेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥३॥

हिंदी अर्थ –
जो महा-सागर (बंगाल की खाड़ी) के तट पर स्थित हैं, सुनहरी आभा से सुशोभित नीलांचल पर्वत पर विराजमान हैं।
जो भव्य प्रासाद (मंदिर) के भीतर अपने बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा के साथ सहज रूप में निवास करते हैं।
जो सभी देवताओं द्वारा सेवा का अवसर प्रदान करने वाले हैं।
ऐसे भगवान जगन्नाथ सदा मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हों।

भावार्थ –
यह श्लोक भगवान जगन्नाथ के पुरी धाम में स्थित स्वरूप का वर्णन करता है। भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ नीलांचल पर्वत पर विराजमान हैं। उनका स्वरूप और दिव्यता सभी देवताओं और भक्तों को सेवा करने का सौभाग्य प्रदान करती है। भक्त उनके दर्शन से जीवन को धन्य मानते हैं।

कृपा पारावारः सजल जलद श्रेणिरुचिरो
रमा वाणी रामः स्फुरद् अमल पङ्केरुहमुखः ।
सुरेन्द्रैर् आराध्यः श्रुतिगण शिखा गीत चरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥४॥

हिंदी अर्थ –
जो कृपा का अनंत सागर हैं, जिनका रूप सजल जलद (बरसात के बादलों) के समान सुंदर और श्यामल है।
जिनके मुख की आभा खिलते हुए शुद्ध कमल के समान है।
जो लक्ष्मी (रमा), सरस्वती (वाणी) और राम (बलराम) द्वारा पूजित हैं।
जिनके गुणों का वर्णन देवताओं के राजा (इंद्र) और वेदों की ऋचाएँ करती हैं।
ऐसे भगवान जगन्नाथ सदा मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हों।

भावार्थ –
यह श्लोक भगवान जगन्नाथ की दया, सौंदर्य और अलौकिकता का वर्णन करता है। उनकी कृपा असीम है, उनका श्यामल रूप अत्यंत मोहक है, और उनका मुख कमल के समान पवित्र है। वे लक्ष्मी, सरस्वती और बलराम जैसे देवताओं के पूज्य हैं, और उनके चरित्र का गुणगान वेद और देवगण करते हैं। भक्त उनकी करुणा और दिव्यता का दर्शन करना चाहते हैं।

रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः
स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥५॥

हिंदी अर्थ –
जो रथ पर आरूढ़ होकर नगर के मार्गों से गुजरते हैं, जहाँ पृथ्वी के ब्राह्मण (भूदेव) समूह उनकी स्तुति करने के लिए एकत्रित होते हैं।
जो हर कदम पर भक्तों की स्तुति सुनकर करुणा से भर जाते हैं।
जो दया के सागर और पूरे संसार के सच्चे मित्र हैं, और जो सागर-कन्या (माता लक्ष्मी) के साथ विराजमान हैं।
ऐसे भगवान जगन्नाथ सदा मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हों।

भावार्थ –
यह श्लोक भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का सुंदर वर्णन करता है। रथ पर सवार भगवान अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए नगर के मार्गों से गुजरते हैं। भक्तगण उनकी स्तुति करते हैं, और भगवान अपने अनंत करुणा के कारण उनकी भक्ति स्वीकार करते हैं। वे संसार के सभी प्राणियों के मित्र हैं और सदा उनकी रक्षा करते हैं।

परंब्रह्मापीड़ः कुवलय-दलोत्‍फुल्ल-नयनो
निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि ।
रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सुखो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे ॥६॥

हिंदी अर्थ –
जो परब्रह्म स्वरूप हैं, जिनकी आँखें पूर्ण खिले हुए कुमुद (नील कमल) के दलों के समान सुंदर हैं।
जो नीलांचल पर्वत (पुरी) पर निवास करते हैं और जिनके चरण भगवान अनंत (शेषनाग) के सिर पर विराजते हैं।
जो रसिक और आनंदमय हैं, और राधा के प्रेममय स्वरूप का आलिंगन करके सुख का अनुभव करते हैं।
ऐसे भगवान जगन्नाथ सदा मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हों।

भावार्थ –
यह श्लोक भगवान जगन्नाथ के परब्रह्म स्वरूप, उनकी सुंदरता, और उनकी दिव्य प्रेम-क्रीड़ाओं का वर्णन करता है। उनका निवास नीलांचल पर है और उनके चरणों का स्थान अनंतनाग के सिर पर है। भगवान राधा के साथ दिव्य प्रेम में रस का अनुभव करते हैं। भक्त उनके इस आनंदमय और प्रेममय स्वरूप का दर्शन करना चाहते हैं।

न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं
न याचेऽहं रम्यां सकल जन काम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथ पतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥७॥

हिंदी अर्थ –
मैं न तो राज्य की याचना करता हूँ, न सोने-चाँदी और रत्नों की संपत्ति की।
न ही मैं ऐसी सुंदर वधू की कामना करता हूँ, जिसे सभी लोग पाने की इच्छा करते हैं।
मैं तो केवल उन भगवान जगन्नाथ के दर्शन चाहता हूँ, जिनके चरित्र का महिमामय वर्णन भगवान शिव बार-बार करते हैं।
ऐसे भगवान जगन्नाथ सदा मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हों।

भावार्थ –
इस श्लोक में भक्त भगवान जगन्नाथ से सांसारिक वस्तुओं की याचना नहीं करता। उसे न तो धन, राज्य, या वैभव चाहिए, न ही किसी सुंदर पत्नी की कामना है। वह केवल भगवान के दिव्य दर्शन की इच्छा रखता है और उनकी महिमा का अनुभव करना चाहता है, जैसा कि स्वयं शिवजी करते हैं। यह श्लोक भक्त की परम भक्ति और त्याग का प्रतीक है।

हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिम् अपरां यादवपते ।
अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥८॥

हिंदी अर्थ –
हे देवताओं के स्वामी (सुरपते), इस असार संसार को शीघ्र ही हर लो।
हे यादवों के स्वामी, मेरे पापों के समूह को भी नष्ट कर दो।
अहो! आपके चरण तो सदा दीनों और अनाथों का सहारा हैं, यह निश्चित सत्य है।
ऐसे भगवान जगन्नाथ सदा मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हों।

भावार्थ –
इस श्लोक में भक्त भगवान से संसार के दुखों और मोह-माया के बंधनों को हरने की प्रार्थना करता है। साथ ही, वह अपने पापों को नष्ट करने और भगवान के चरणों का सदा सहारा पाने की कामना करता है। भगवान जगन्नाथ को दीन-दुखियों और अनाथों का सच्चा रक्षक बताया गया है। भक्त उनके दर्शन के लिए विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करता है।

जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥९॥

हिंदी अर्थ –
जो व्यक्ति शुद्धता और ध्यानपूर्वक समर्पण के साथ *जगन्नाथाष्टकं* का पाठ करता है,
उसका हृदय सभी पापों से शुद्ध हो जाता है और वह विष्णुलोक (स्वर्ग) को प्राप्त करता है।

भावार्थ –
यह श्लोक इस बात का प्रमाण है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और शुद्धता के साथ *जगन्नाथाष्टकम्* का पाठ करता है, वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के परमधाम (स्वर्ग) को प्राप्त करता है। यह श्लोक भक्तों को इस स्तोत्र के महत्व और इसके पाठ से मिलने वाले पुण्य का ज्ञान कराता है।

॥ इति श्रीमत् शंकराचार्यविरचितं जगन्नाथाष्टकं संपूर्णम् ॥

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श्री जगन्नाथ अष्टकम् स्तोत्र पढ़ने के लाभ

1. पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि
श्री जगन्नाथ अष्टकम् का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त होते हैं। इस स्तोत्र के आठ श्लोक भगवान जगन्नाथ की महिमा का बखान करते हैं, और उन्हें श्रद्धा से पढ़ने से आत्मा शुद्ध होती है। इसे पढ़ने से व्यक्ति अपने जीवन के नकारात्मक तत्वों से मुक्त हो जाता है।

2. मानसिक शांति और मानसिक तनाव का निवारण
भगवान जगन्नाथ के चरणों में अडिग विश्वास रखने वाले भक्तों को मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र मानसिक तनाव और चिंता को दूर करने में मदद करता है, क्योंकि यह भक्त को भगवान के दिव्य स्वरूप और उनकी कृपा का अहसास कराता है।

3. भगवान की कृपा और आशीर्वाद
जो व्यक्ति इस स्तोत्र को श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ता है, उसे भगवान जगन्नाथ की अनुग्रह प्राप्त होती है। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त भगवान की कृपा और आशीर्वाद के पात्र बनते हैं, जिससे उनके जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।

4. आध्यात्मिक उन्नति और आत्म-ज्ञान
यह स्तोत्र भगवान के दिव्य रूप और उनके गुणों की व्याख्या करता है, जो भक्तों को आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है। नियमित पाठ करने से भक्त का आत्मविश्वास बढ़ता है और वह अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानने में सक्षम होता है।

5. संकटों और दुखों का निवारण
श्री जगन्नाथ अष्टकम् को पढ़ने से जीवन के संकटों, दुखों और विफलताओं से राहत मिलती है। भगवान जगन्नाथ की स्तुति करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन में आई कठिनाइयों से उबरने में सहायक होती है। यह स्तोत्र मानसिक और शारीरिक पीड़ाओं से राहत दिलाने में प्रभावी है।

6. मोक्ष और वैकुंठ की प्राप्ति
श्री जगन्नाथ अष्टकम् का पाठ करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति भगवान के चरणों में शरण पाकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। इस स्तोत्र का पाठ भगवान विष्णु के परम धाम (वैकुंठ) में स्थान प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है।

7. भगवान के दर्शन और भक्ति का अनुभव
इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त भगवान जगन्नाथ के चरणों में विशेष रूप से भावुक और ध्यानमग्न हो जाता है। भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम बढ़ता है, और भक्त को भगवान के दिव्य रूप का आभास होने लगता है।

निष्कर्ष
श्री जगन्नाथ अष्टकम् स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि आती है। यह न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि भक्तों को मानसिक शांति, मानसिक स्थिरता और भगवान की कृपा का आशीर्वाद भी प्रदान करता है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और आंतरिक शांति मिलती है, जो व्यक्ति को अपने उद्देश्य और लक्ष्य की ओर अग्रसर करती है।

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