Shri Jagannath Ashtakshara Stotram | श्री जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्रम्

Shri Jagannath Ashtakshara Stotram भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो भगवान जगन्नाथ की महिमा का गुणगान करता है। यह स्तोत्र भगवान जगन्नाथ की विशेषताओं, उनके दिव्य स्वरूप और उनकी कृपा का वर्णन करता है। भगवान जगन्नाथ को “उत्कल प्रदेश” यानी वर्तमान ओडिशा का अधिपति और विश्व के कल्याण के लिए अवतरित भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। इस स्तोत्र में उनके अद्भुत रूप, उनकी लीलाओं, भक्तों पर उनकी कृपा और उनके धाम की महिमा का वर्णन किया गया है।

Shri Jagannath Ashtakshara Stotram

जगन्नाथ का स्वरूप और महिमा

Shri Jagannath Ashtakshara Stotram भगवान जगन्नाथ को उनके सरल, अलौकिक और निराकार स्वरूप के लिए जाना जाता है। उनका निवास पुरी में स्थित “जगन्नाथ मंदिर” में है, जो चार धामों में से एक है। इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान के नीलाचल पर्वत (नीलकंठ) पर स्थित क्षेत्र और वहाँ के दिव्य वातावरण का वर्णन किया गया है। यहाँ भगवान को “पापनाशक” और “मुक्तिदायक” कहा गया है, जो उनके भक्तों के सभी प्रकार के दुखों और पापों को हर लेते हैं।

स्तोत्र की संरचना

Shri Jagannath Ashtakshara Stotram यह स्तोत्र आठ श्लोकों का संग्रह है, जिसमें भगवान जगन्नाथ के धाम, उनकी अद्भुत लीलाओं और उनकी दिव्य स्तुति का वर्णन किया गया है। हर श्लोक के अंत में “वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्” कहा गया है, जिसका अर्थ है, “उन भगवान जगन्नाथ को वंदन करता हूँ, जो कमल के समान नेत्र वाले और सभी पापों को नष्ट करने वाले हैं।”

भावार्थ और महत्व

Shri Jagannath Ashtakshara Stotram इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों के मन में भगवान के प्रति भक्ति और श्रद्धा बढ़ती है। यह स्तोत्र उनके भक्तों को यह विश्वास दिलाता है कि भगवान जगन्नाथ सदा उनकी रक्षा करेंगे और उन्हें मोक्ष प्रदान करेंगे।
भगवान जगन्नाथ के नीलाचल धाम और वहाँ की पवित्रता का वर्णन इस स्तोत्र में इतना अद्भुत है कि इसे पढ़ने मात्र से भक्त मानसिक शांति और दिव्य अनुभव का अनुभव करते हैं।

जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्र का उद्देश्य

Shri Jagannath Ashtakshara Stotram इस स्तोत्र का मुख्य उद्देश्य भक्तों को भगवान की लीलाओं और उनके स्वरूप से परिचित कराना है। यह भगवान की महिमा का गुणगान करने के साथ-साथ उनके भक्तों के दुखों को दूर करने और जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा भरने का संदेश देता है।

श्री जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्रम्

उत्कलाञ्चल क्षीरसागर रम्यसञ्चर वासकम्।
नीलकन्दर मन्दरा र्चित पापवारण त्रासकम्॥
मुक्तिदायक मुक्तिमण्डप शक्तिसंकुल सागरम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ १

रम्य कल्पक वृक्षराजित क्षेत्र श्रीसुर वन्दनम्।
भव्य मण्डन पाप खण्डन नील पर्वत सुन्दरम्॥
भग्नि वामक भूषणार्चित साग्रजं रिपु मर्द्धनम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ २

भक्तमानस सर्वसम्पद पापनाशन कारकम्।
दारुदैवत चारुपात्रक कालबन्ध विनाशकम्॥
संर्चिता कुल श्रद्धमानस बन्धवर्धन हारकम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ३

कान्तिमञ्जुल वर्त्तुलानन सारसौरभ स्वर्चितम्।
शङ्खनाभिक पीठ भूषण वेदवर्णित निर्गुणम्॥
भालमण्डल सालमण्डित पट्टवस्त्र विशोभितम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ४

शङ्खवादन भेरिनादन घंटघण्टिनिनादितम्।
थाटनर्त्तन छत्रचामर चेलचौलनिचालितम्॥
वेत्रध्वनिनं गात्रमर्द्धन मन्त्रपाठन स्थावितम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ५

स्यन्दरा हित मार्गमन्थर मन्दभाषण मोदितम्।
माण्डिमण्डन तुण्डहेलन दण्डदलन तोषितम्॥
भालचित्रक गण्डगात्रक पट्टसूत्र सुवेष्टितम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ६

कुन्दचम्पक चारुचन्दन पत्रतुलसीमण्डनम्।
मन्दगायन चित्तवासन मत्तसेवक भर्चितम्॥
वन्दिचालक चन्दनर्तन माहारी कृत मोदनम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ७

विश्वमानव मानमर्द्धन भेदभीदुर भेदनम्।
क्षेत्रपुण्यकवासवेष्टित सर्वदैवत शोभितम्॥
मिश्रपण्डित नेत्रमण्डन पापखण्डन कारकम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ८

॥ इति श्री जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

ଶ୍ରୀ ଜଗନ୍ନାଥ ଅଷ୍ଟାକ୍ଷର ସ୍ତୋତ୍ର (ଓଡ଼ିଆ)

ଶ୍ରୀ ଜଗନ୍ନାଥ ଅଷ୍ଟାକ୍ଷର ସ୍ତୋତ୍ର

ଉତ୍କଳାଞ୍ଚଳ କ୍ଷୀର ସାଗର ରମ୍ୟସଂଚର ବାସକମ୍ ।
ନୀଳ କନ୍ଦର ମନ୍ଦରା ର୍ଚିତ ପାପ ବାରଣ ତ୍ରାସକମ୍ ॥
ମୁକ୍ତି ଦାୟକ ମୁକ୍ତି ମଣ୍ଡପ ଶକ୍ତି ସଙ୍କୁଳ ସାଗରମ୍ ।
ବନ୍ଦେ ପାତକ ନାଶନଂ ଜଗନ୍ନାଥ ମମ୍ବୁଜ ଲୋଚନମ୍ ॥ ୧

ରମ୍ୟ କଳ୍ପକ ବୃକ୍ଷ ରାଜିତ କ୍ଷେତ୍ର ଶ୍ରୀସୁର ବନ୍ଦନମ୍ ।
ଭବ୍ୟ ମଣ୍ଡନ ପାପ ଖଣ୍ଡନ ନୀଳ ପର୍ବତ ସୁନ୍ଦରମ୍ ॥
ଭଗ୍ନି ବାମକ ଭୂଷଣା ର୍ଚିତ ସାଗ୍ରଜଂ ରିପୁ ମର୍ଦ୍ଧନମ୍ ।
ବନ୍ଦେ ପାତକ ନାଶନଂ ଜଗନ୍ନାଥ ମମ୍ବୁଜ ଲୋଚନମ୍ ॥ ୨

ଭକ୍ତ ମାନସ ସର୍ବ ସଂପଦ ପାପ ନାଶନ କାରକମ୍ ।
ଦାରୁ ଦୈବତ ଚାରୁ ପାତ୍ରକ କାଳ ବନ୍ଧ ବିନାଶକମ୍ ॥
ସଂର୍ଚିତା କୁଳ ଶ୍ରଦ୍ଧ ମାନସ ବନ୍ଧ ବର୍ଦ୍ଧନ ହାରକମ୍ ।
ବନ୍ଦେ ପାତକ ନାଶନଂ ଜଗନ୍ନାଥ ମମ୍ବୁଜ ଲୋଚନମ୍ ॥ ୩

କାନ୍ତି ମଞ୍ଜୁଳ ବର୍ତ୍ତୁଳାନନ ସାର ସୌରଭ ସ୍ଵର୍ଚିତମ୍ ।
ଶଂଖ ନାଭିକ ପୀଠ ଭୂଷଣ ବେଦ ବର୍ଣ୍ଣିତ ନିର୍ଗୁଣମ୍ ॥
ଭାଳ ମଣ୍ଡଳ ସାଳ ମଣ୍ଡିତ ପଟ୍ଟ ବସ୍ତ୍ର ବିଶୋଭିତମ୍ ।
ବନ୍ଦେ ପାତକ ନାଶନଂ ଜଗନ୍ନାଥ ମମ୍ବୁଜ ଲୋଚନମ୍ ॥ ୪

ଶଂଖ ବାଦନ ଭେରି ନାଦନ ଘଣ୍ଟ ଘଣ୍ଟି ନିନାଦିତମ୍ ।
ଥାଟ ନର୍ତ୍ତନ ଛତ୍ର ଚାମର ଚେଳ ଚୌଳ ନିଚାଳିତମ୍ ॥
ବେତ୍ର ଧ୍ବନନଂ ଗାତ୍ର ମର୍ଦ୍ଧନ ମନ୍ତ୍ର ପାଠନ ସ୍ଥାବିତମ୍ ।
ବନ୍ଦେ ପାତକ ନାଶନଂ ଜଗନ୍ନାଥ ମମ୍ବୁଜ ଲୋଚନମ୍ ॥ ୫

ସ୍ୟନ୍ଦରା ହିତ ମାର୍ଗ ମନ୍ଥର ମନ୍ଦ ଭାଷଣ ମୋଦିତମ୍ ।
ମାଣ୍ଡି ମଣ୍ଡନ ତୁଣ୍ଡ ହେଳନ ଦଣ୍ଡ ଦଳନ ତୋଷିତମ୍ ॥
ଭାଳ ଚିତ୍ରକ ଗଣ୍ଡ ଗାତ୍ରକ ପଟ୍ଟ ସୂତ୍ର ସୁବେଷ୍ଟିତମ୍ ।
ବନ୍ଦେ ପାତକ ନାଶନଂ ଜଗନ୍ନାଥ ମମ୍ବୁଜ ଲୋଚନମ୍ ॥ ୬

କୁନ୍ଦ ଚଂପକ ଚାରୁ ଚନ୍ଦନ ପତ୍ର ତୁଳସୀ ମଣ୍ଡନମ୍ ।
ମନ୍ଦ ଗାୟନ ଚିତ୍ତ ବାସନ ମତ୍ତ ସେବକ ଭର୍ଚିତମ୍ ॥
ବନ୍ଦି ଚାଳକ ଚନ୍ଦ ନର୍ତ୍ତନ ମାହାରୀ କୃତ ମୋଦନମ୍ ।
ବନ୍ଦେ ପାତକ ନାଶନଂ ଜଗନ୍ନାଥ ମମ୍ବୁଜ ଲୋଚନମ୍ ॥ ୭

ବିଶ୍ଵ ମାନବ ମାନ ମର୍ଦ୍ଦନ ଭେଦ ଭୀଦୁର ଭେଦନମ୍ ।
କ୍ଷେତ୍ର ପୁଣ୍ୟକ ବାସ ବେଷ୍ଟିତ ସର୍ବ ଦୈବତ ଶୋଭିତମ୍ ॥
ମିଶ୍ର ପଣ୍ଡିତ ନେତ୍ର ମଣ୍ଡନ ପାପ ଖଣ୍ଡନ କାରକମ୍ ।
ବନ୍ଦେ ପାତକ ନାଶନଂ ଜଗନ୍ନାଥ ମମ୍ବୁଜ ଲୋଚନମ୍ ॥ ୮

॥ ଇତି ଶ୍ରୀ ଜଗନ୍ନାଥ ଅଷ୍ଟାକ୍ଷର ସ୍ତୋତ୍ର ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ॥

श्री जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित

उत्कलाञ्चल क्षीरसागर रम्यसञ्चर वासकम्।
नीलकन्दर मन्दरा र्चित पापवारण त्रासकम्॥
मुक्तिदायक मुक्तिमण्डप शक्तिसंकुल सागरम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ १

हिंदी अर्थ -: उत्कल प्रदेश का वह रमणीय क्षेत्र जहाँ क्षीरसागर का अद्भुत सौंदर्य विद्यमान है। वहाँ के नीलकंठ पर्वत को देखकर पाप और भय समाप्त हो जाते हैं। मुक्तिदाता, मुक्तिमंडप में निवास करने वाला, और शक्ति से युक्त भगवान को प्रणाम करता हूँ। मेरे कमल के समान नेत्रों वाले भगवान जगन्नाथ, जो पापों का नाश करते हैं, उन्हें नमस्कार है।

रम्य कल्पक वृक्षराजित क्षेत्र श्रीसुर वन्दनम्।
भव्य मण्डन पाप खण्डन नील पर्वत सुन्दरम्॥
भग्नि वामक भूषणार्चित साग्रजं रिपु मर्द्धनम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ २

हिंदी अर्थ -: कल्पवृक्षों से सुशोभित वह क्षेत्र जहाँ देवताओं द्वारा वंदना की जाती है। नील पर्वत के सुंदर दृश्य और वहाँ के भव्य वातावरण में पाप समाप्त हो जाते हैं। भगवान, जिनका गहना उनके भक्त हैं, जो अपने शत्रुओं का विनाश करते हैं, ऐसे साक्षात् जगन्नाथ को प्रणाम करता हूँ।

भक्तमानस सर्वसम्पद पापनाशन कारकम्।
दारुदैवत चारुपात्रक कालबन्ध विनाशकम्॥
संर्चिता कुल श्रद्धमानस बन्धवर्धन हारकम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ३

हिंदी अर्थ -: भक्तों के मन की सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला और पापों को समाप्त करने वाला वह स्थान। दारु (लकड़ी) से बने देवता की अद्भुत मूर्ति, जो समय और बंधन को समाप्त करती है। श्रद्धा से भरपूर कुलों के लिए कल्याणकारी भगवान, जो सभी प्रकार के बंधनों को समाप्त करते हैं, ऐसे पापनाशक भगवान जगन्नाथ को प्रणाम।

कान्तिमञ्जुल वर्त्तुलानन सारसौरभ स्वर्चितम्।
शङ्खनाभिक पीठ भूषण वेदवर्णित निर्गुणम्॥
भालमण्डल सालमण्डित पट्टवस्त्र विशोभितम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ४

हिंदी अर्थ -: जिनके सुंदर और वर्तुल (गोल) मुखमंडल से अद्भुत सुगंध निकलती है। जिनका सिंहासन शंख और कमल से सुसज्जित है, और जिन्हें वेदों ने निर्गुण और अच्युत के रूप में वर्णित किया है। जिनकी मस्तक पर चक्र की शोभा है और जो सुन्दर वस्त्रों से विभूषित हैं, ऐसे भगवान जगन्नाथ को प्रणाम।

शङ्खवादन भेरिनादन घंटघण्टिनिनादितम्।
थाटनर्त्तन छत्रचामर चेलचौलनिचालितम्॥
वेत्रध्वनिनं गात्रमर्द्धन मन्त्रपाठन स्थावितम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ५

हिंदी अर्थ -: शंख, भेरी और घंटियों की ध्वनि से गूंजने वाला वह स्थान। जहाँ छत्र, चामर और सेवकों के द्वारा उनकी सेवा होती है। जिनके मंत्रों का पाठ भक्तों के मन में शांति और शक्ति लाता है, ऐसे पापनाशक भगवान जगन्नाथ को प्रणाम।

स्यन्दरा हित मार्गमन्थर मन्दभाषण मोदितम्।
माण्डिमण्डन तुण्डहेलन दण्डदलन तोषितम्॥
भालचित्रक गण्डगात्रक पट्टसूत्र सुवेष्टितम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ६

हिंदी अर्थ -: जिनका मार्गदर्शन धीमा और मधुर होता है और जिनके वचन हृदय को प्रसन्न करते हैं। जिनके मुख के कंपन और जिनके हाथों की हलचल से भी शत्रुओं का नाश हो जाता है। जिनका मस्तक चित्रों से सुशोभित और शरीर वस्त्रों से ढका हुआ है, ऐसे भगवान जगन्नाथ को प्रणाम।

कुन्दचम्पक चारुचन्दन पत्रतुलसीमण्डनम्।
मन्दगायन चित्तवासन मत्तसेवक भर्चितम्॥
वन्दिचालक चन्दनर्तन माहारी कृत मोदनम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ७

हिंदी अर्थ -: कुंद, चंपा और चंदन से सुसज्जित और तुलसी से मण्डित भगवान। जिनकी स्तुति में भक्तगण गान करते हैं और मन प्रसन्न हो जाता है। जिनके सेवक उनके चरणों में समर्पित होते हैं, ऐसे भगवान जगन्नाथ को प्रणाम।

विश्वमानव मानमर्द्धन भेदभीदुर भेदनम्।
क्षेत्रपुण्यकवासवेष्टित सर्वदैवत शोभितम्॥
मिश्रपण्डित नेत्रमण्डन पापखण्डन कारकम्।
वन्दे पातकनाशनं जगन्नाथ मम्बुज लोचनम्॥ ८

हिंदी अर्थ -: जो मानवता को उच्चता देते हैं और जो भेदभाव और दुःखों को समाप्त करते हैं। क्षेत्र में स्थित वह पवित्र स्थान जहाँ सभी देवताओं का निवास होता है। पंडितों द्वारा वंदित और पापों का नाश करने वाले भगवान जगन्नाथ को प्रणाम।

॥ इति श्री जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्र पढ़ने के लाभ

जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्र भगवान जगन्नाथ की महिमा का वर्णन करता है और भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान जगन्नाथ के आठ श्लोकों का संग्रह है, जिनमें उनके दिव्य स्वरूप, उनके धाम और उनकी कृपा का गुणगान किया गया है।

1. पापों का नाश
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन के पाप समाप्त होते हैं। इसे “पातकनाशनं” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि यह भगवान पापों का नाश करते हैं।

2. भय और कष्टों से मुक्ति
भगवान जगन्नाथ को त्रास और भय हरने वाला कहा गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

3. मोक्ष की प्राप्ति
भगवान जगन्नाथ को “मुक्तिदायक” कहा गया है। इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को जीवन के चक्र (जन्म और मृत्यु) से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करता है।

4. शारीरिक और मानसिक शांति
भगवान के रूप, उनकी कृपा और उनकी लीलाओं का स्मरण व्यक्ति के मन में शांति और संतोष लाता है। यह तनाव और चिंता को दूर करता है।

5. भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि
इस स्तोत्र का पाठ भक्तों के मन में भगवान के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा उत्पन्न करता है। यह उनके जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है।

6. समृद्धि और सुख
भगवान जगन्नाथ को समस्त संसार के पालनहार और सुख-संपत्ति प्रदान करने वाला कहा गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से परिवार और जीवन में समृद्धि आती है।

7. सकारात्मक ऊर्जा का संचार
इस स्तोत्र में भगवान के धाम, उनकी मूर्ति और उनके स्वरूप का वर्णन है, जिससे पाठक के मन में सकारात्मक ऊर्जा और विश्वास का संचार होता है।

8. धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान
जगन्नाथ अष्टाक्षर स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को भगवान के दिव्य स्वरूप और उनकी लीलाओं के बारे में जानने का अवसर मिलता है। यह व्यक्ति को धर्म और अध्यात्म के पथ पर अग्रसर करता है।

पाठ की विधि

* इस स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल या संध्याकाल में, स्नान करने के बाद, भगवान जगन्नाथ के चित्र या मूर्ति के सामने बैठकर किया जाता है।

* पाठ करते समय मन को एकाग्र और शुद्ध रखें।

*अगर संभव हो तो जगन्नाथ महाप्रभु को तुलसी, फूल, और चंदन अर्पित करें।

निष्कर्ष

जगन्नाथ स्तोत्रम केवल एक प्रार्थना नहीं है, बल्कि भगवान के साथ जुड़ने का एक अद्भुत माध्यम है। इसका पाठ करने से न केवल भगवान की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि यह आत्मा को शुद्ध कर मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करता है। यह स्तोत्र भगवान जगन्नाथ के प्रति अटूट विश्वास, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।

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