Shri Suktam इस सूक्त के आनन्द, कर्दम, चिक्लीत, जातवेद ऋषि, ‘श्री’ देवता और अनुष्टुप् प्रस्तारपंक्ति एवं त्रिष्टुप छन्द हैं। देवी के पूजन में ‘श्रीसूक्त’ की अतिशय मान्यता है। विशेषकर भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये ‘श्रीसूक्त’ के पाठ की विशेष महिमा बतायी गयी है। ऐश्वर्य एवं सुख-समृद्धि की कामना से इस सूक्त के मन्त्रों का जप तथा इन मन्त्रों से पूजन, हवन अभीष्टदायक होता है। यह सूक्त ऋक् परिशिष्ट में दिया गया है। यहाँ इस सूक्त को अनुवाद सहित दिया जा रहा है-
Shri Suktam
श्रीसूक्तम्
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ ऽवह ॥१॥
हे वेदों को प्रकट करनेवाले अग्निदेव ! सुवर्ण के वर्ण सदृश कान्ति- वाली, हरितवर्णवाली या हिरणी का रूप धारण करनेवाली, सोने और चाँदी के पुष्पों की माला धारण करनेवाली, चन्द्रमा के समान प्रकाशमान, सोने के समान रूपवाली लक्ष्मीजी का मेरे लिए आवाहन कीजिये ।।१।।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।।२।।
हे अग्निदेव ! उन कभी न दूर होनेवाली लक्ष्मी का मेरे लिये आवाहन कीजिये, जिनके आने पर मैं सुवर्ण, गौ, अश्व और पुत्र-मित्र आदि को प्राप्त करूँ।।२।।
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।। ३ ।।
जिनके अग्रभाग में अश्व हों, जिनके मध्य भाग में रथ हों, हाथियों की चिग्घाड़ से सबको बोधित करनेवाली, क्रीड़ा करती हुई लक्ष्मी का मैं आवाहन करता हूँ; वे प्रकाशमान देवी लक्ष्मी मुझको सेवित करें।॥३॥
कां सोऽस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्ये स्थितां पद्मवर्णां
तामिहोप ह्वये श्रियम् ।। ४।।
ब्रह्मरूपा, उत्कृष्ट मन्द हास्य से युक्त, सुवर्ण के आवरणवाली, शीतप्रकृति, ज्योतिःस्वरूपा, पूर्णकामा, भक्तों को भी तृप्त करनेवाली कमल में स्थित, कमलतुल्य आकृतिवाली उन लक्ष्मी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ।।४।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये
अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ ५॥
चन्द्रसदृश अत्यन्त कान्तिवाली, संसार में प्रकाशमान, यशवाली, देवताओं से सेवित, उदार प्रकृतिवाली, कमल के समान आकृतिवाली, ईकार से वाच्य उन लक्ष्मीजी के मैं शरणागत हूँ। वे मेरी दरिद्रता का नाश करें, मैं आपको स्वीकार करता हूँ।॥५॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।। ६ ।।
हे सूर्य के समान कान्तिवाली लक्ष्मी! तुम्हारी तपस्या से ही मंगलरूप विल्व नाम का वृक्ष उत्पन्न हुआ; वे बिल्व के फल तपश्चर्या द्वारा अज्ञान और विघ्नों को तथा बहिरिन्द्रियों से उत्पन्न अलक्ष्मियों को भी दूर करें।।६।।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ ७॥
महादेवजी के सखा कुबेर और चिन्तामणि के साथ कीर्ति मुझे प्राप्त हो, इस राष्ट्र में उत्पन्न हुए मुझे आप कीर्ति और समृद्धि प्रदान करें।।७।।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णद मे गृहात् ॥८ ॥
भूख और प्यास से मलिन लक्ष्मी से पूर्व उत्पन्न अलक्ष्मी को मैं नष्ट करता हूँ; सब प्रकार के अनैश्वर्य और असमृद्धि को मेरे घर से दूर करो ॥८॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्॥९॥
सुगन्धवती, दुःसहा, सर्वदा समृद्धिशाली की गोमय में निवास करनेवाली, समस्त प्राणियों की ईश्वरी उन लक्ष्मीजी का मैं इस प्रदेश में आवाहन करता हूँ।।९।।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥
हम मन की कामनाओं के संकल्पों को, वाणी की यथार्थता को, पशुओं तथा अन्न को, स्वरूप को प्राप्त करें। सम्पत्ति और कीर्ति मुझे प्राप्त हो।।१०।।
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।११।।
हे कर्दम! (आप लक्ष्मीजी के पुत्र हैं) आपसे ही लक्ष्मीजी पुत्रवती हैं। आप मेरे घर पर उत्पन्न होओ। कमलों की माला धारण करनेवाली लक्ष्मीजी को मेरे कुल में निवास कराओ।।११।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
निच देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥१२॥
जल मेरे लिये स्नेहयुक्त पदार्थों को उत्पन्न करे, हे चिक्लीत ! आप मेरे घर में निवास कीजिये और अपनी माता देवी लक्ष्मजी को भी मेरे कुल में निवास कराइये।।१२।।
आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह ॥१३।।
हे अग्ने ! स्निग्ध या आर्द्र गन्धवाली, पुष्टिकरी, स्वयं पुष्टिस्वरूपा, पीतवर्णा, कमलमालाधारिणी, आह्लादनी, सुवर्णमयी लक्ष्मी का मेरे लिये आवाहन कीजिये ।।१३।।
आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्या हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म ऽआवह ॥१४॥
हे अग्ने ! स्नेहमयी, ऐश्वर्य को बढ़ानेवाली, हाथ में यष्टि (छड़ी) लिये हुए, सुन्दर कान्तिवाली, सुवर्णमय माला को धारण करनेवाली, ऐश्वर्यरूपा, स्वर्णमयी, लक्ष्मीजी का मेरे लिये आवाहन कीजिये ।।१४।।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।१५।।
हे अग्ने ! सदा स्थिर रहनेवाली उस लक्ष्मी का मेरे लिये आवाहन कीजिये, जिस लक्ष्मी के आने पर मैं प्रचुर सुवर्ण, गायें, दासियाँ, घोड़े और सेवक प्राप्त करूँ ।।१५।।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत् ।।१६ ।।
जो लक्ष्मी (धन) की इच्छा करता हो; वह पवित्र संयमी होकर प्रतिदिन शुद्ध घृत द्वारा हवन करे और श्रीसूक्त की पन्द्रह ऋचाओं का निरन्तर जप करे तो उसे सुख-समृद्धि व धन की प्राप्ति होती है।।१६।।
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