Shri Durga Sahasranama Stotram श्री दुर्गा सहस्त्रनाम देवी दुर्गा के 1000 नामों का संग्रह है। दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र वास्तव में एक ऐसा स्तोत्र है जिसमें माँ दुर्गा की महिमा का वर्णन किया जाता है और उनकी हजारों नामों का उच्चारण किया जाता है। नवरात्रि के पावन अवसर पर दुर्गा सहस्त्रनाम का श्रद्धा और समर्पण के साथ जाप करने से साधक माँ दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करता है। दुर्गा सहस्त्रनाम में सभी नामों को श्लोकों के रूप में व्यवस्थित किया गया है, और ध्यानपूर्वक इस प्रकार लिखा गया है कि कोई भी नाम दोहराया नहीं गया है।
संस्कृत में “दुर्गा” का अर्थ है “जो अज्ञेय या कठिनाई से प्राप्त होने वाली हैं।” माँ दुर्गा शक्ति का वह रूप हैं, जिन्हें उनकी कृपा और रौद्र रूप दोनों के लिए पूजा जाता है। वह ब्रह्मांड की माँ हैं और ब्रह्मांड की अनंत शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। माँ दुर्गा का साकार रूप उनकी निराकार शक्ति से उत्पन्न होता है और दोनों एक-दूसरे से अविभाज्य हैं।
यह अक्सर माना जाता है कि जो भी भक्त माँ दुर्गा (दुर्गा सहस्त्रनाम) की प्रार्थना करता है, उसे प्रारंभ में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन समय के साथ ये बाधाएँ सूर्य की गर्मी में पिघलती बर्फ की तरह समाप्त हो जाती हैं। माँ दुर्गा सहस्त्रनाम की महिमा का वर्णन करने के लिए शब्द भी अपर्याप्त हैं।
Shri Durga Sahasranama Stotram (श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र के लाभ)
1. निर्भयता और वरदान की प्राप्ति – दुर्गा सहस्त्रनाम के नियमित पाठ से साधक निर्भय हो जाता है और उसे मनचाहा वरदान प्राप्त होता है।
2. जीवनभर के लिए शुभ फल – इसका जाप करने से पूरे जीवन में सौभाग्य का आगमन होता है और साधक के जीवन में सकारात्मकता बनी रहती है।
3. शांति, समृद्धि और शक्ति – दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ साधक को चिरस्थायी शांति, समृद्धि और शक्ति प्रदान करता है।
4. पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति – यह स्तोत्र साधक को सभी पापों से मुक्त करता है और उसे पुनर्जन्म के चक्र से भी मुक्ति दिलाता है।
5. पापों से मुक्ति – दुर्गा सहस्त्रनाम के जाप से माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो साधक के पापों को हर लेता है।
6. रोगमुक्त और अकाल मृत्यु से बचाव – इसका पाठ करने से साधक को निरोगी जीवन और अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है।
7. संतान प्राप्ति – जो दंपत्ति संतान प्राप्ति में असमर्थ हैं, उनके लिए दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ संतान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है और संतानों के सुख की प्राप्ति कराता है।
8. धन और संपत्ति की प्राप्ति – दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ करने से व्यक्ति को वित्तीय सहायता प्राप्त होती है और जो धन फंसा हुआ है, वह भी प्राप्त होता है।
9. शांति और समृद्धि का वास – यह पाठ करने से जीवन में शांति और समृद्धि आती है, और इसका प्रभाव न केवल साधक पर बल्कि उसके परिवार पर भी पड़ता है।
10. मन की शांति और आत्मा की शुद्धि – इसका जाप मन और चेतना में शांति लाता है और आत्मा को शुद्ध करता है।
Shri Durga Sahasranama Stotram (कौन दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करें)
जो लोग अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और जीवन में शांति की कामना करते हैं, उन्हें दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा, जो लोग शत्रुओं के कार्यों से प्रभावित हैं, उन्हें भी इस स्तोत्र का जाप करना चाहिए।
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Shri Durga Sahasranama Stotram (श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम्)
श्री भैरव उवाच –
अधुना शृणुवक्ष्यामि दुर्गासर्वस्वमीश्वरी ।
रहस्यं सर्व देवानां दुर्लभं जन्मिनामपि ॥ १॥
श्रीदुर्गातत्त्वमुद्दिष्टसारं त्रैलोक्यकारणम् ।
मन्त्रनामसहस्रं च दुर्गायाः पुण्यदं परम् ॥ २॥
यं पठित्वा शिवे धृत्वा देवीनामसहस्रकम् ।
इह भोगी परत्रापि जीवन्मुक्तो भवेन्नरः ॥ ३॥
इदं नामसहस्रं ते मन्त्रगर्भं रहस्यकम् ।
अश्वमेधायुतात्पुण्यं लोके सौभाग्यवर्धनम् ॥ ४॥
श्रेयस्करं विश्ववन्द्यं सर्वदेवनमस्कृतम् ।
गुह्यं गोप्यतमं देवि पठनात् सिद्धिदायकम् ॥ ५॥
अस्य श्रीदुर्गासहस्रनामस्तोत्रमहामन्त्रस्य श्रीमहेश्वर ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्रीदुर्गा देवता, दुं बीजं, ह्रीं शक्तिः,
ॐ कीलकं, धर्मार्थकाममोक्षार्थे सहस्रनामपाठे विनियोगः ॥
ध्यानम्-
दूर्वानिभां त्रिनयनां विलसत्किरीटां
शङ्खाब्जखड्गशरखेटकशूलचापान् ।
सन्तर्जनीं च दधतीं महिषासनस्थां
दुर्गां नवारकुलपीठगतां भजेऽहम् ॥
ॐ ह्रीं दुं जगदम्बा भाभद्रिका भद्रकालिका ।
प्रचण्डा चण्डिका चण्डी चण्डमुण्डनिषूदिनी ॥ ६॥
अनसूया त्रुटिस्तारा कृत्तिका कुब्जिका लया ।
प्रलया स्थितिः सम्भूतिर्विभूतिर्भयनाशिनी ॥ ७॥
महामाया महाविद्या मूलविद्या चिदीश्वरी ।
मदालसा मदोत्तुङ्गामदिरा मदनप्रिया ॥ ८॥
आलिर्व्यालप्रसूः पुण्या पवित्रा परमेश्वरी ।
आदिदेवी कला कान्ता त्रिपुरा जगदीश्वरी ॥ ९॥
मनोन्मना महालक्ष्मीः सिद्धलक्ष्मीः सरस्वती ।
सरित्कादम्बरी गोधा गुह्यकाली गणेश्वरी ॥ १०॥
गणाम्बिका जया तापी तपना तापहारिणी ।
तपोमयी दुरालम्बा दुष्टग्रहनिवारिणी ॥ ११॥
दुःखहा सुखदा साध्वी परमामृतसूः सुरा ।
सुधा सुधांशुनिलयाप्रलयानलसन्निभा ॥ १२॥
समस्तासम्पदम्भोजनिलया कर्णिकालया ।
विद्येश्वरी विश्वमयी विराट् छन्दो गतिर्मतिः ॥ १३॥
धृतिदा(धृतिश्च) दाम्भिकी दोला लोपामुद्रा पटीयसी ।
गरिष्ठाऽरिष्टहाऽदुष्टा कृपा काशी कुलाऽकुला ॥ १४॥
अकुलस्था पदन्यासा न्यासरूपा विरूपिणी ।
विरूपाक्षी कोटराक्षी कुलकान्ताऽपराजिता ॥ १५॥
अजिता कुलिका लम्पा लम्पटा त्रिपुरेश्वरी ।
त्रितयी वेदविन्यासा संन्यासासुमतिर्भया ॥ १६॥
अभया स्वर्मुखा देवी महौषधिरलम्बुसा ।
चपला चन्द्रिका चण्डा चण्डमुण्डनिसूदिनी ॥ १७॥
चापलाक्षी मदाविष्टा मदिरारुणलोचना ।
पुरी त्रिपुरसूरास्ना रसा रामा मनोहरा (रमा) ॥ १८॥
सन्ध्या सन्ध्याभ्रशीलाच शालाश्यामपयोधरा ।
शशाङ्कमुकुटा श्यामा सुरासुन्दरलोचना ॥ १९॥
विषमाक्षी विशालाक्षी वा(व) शा वागीश्वरी शिला ।
मनःशिला च कस्तूरी मृगनाभिर्मृगेक्षणा ॥ २०॥
मृगारिवाहनामा(सा)ध्वी मानदा मत्तभाषिणी ।
नारसिंही वामदेवी वामा वामश्रुतिप्रिया ॥ २१॥
पुण्यापुण्यगतिः पुण्या पुत्री पुण्यजनप्रिया ।
चामुण्डा चोग्रचण्डा च महाचण्डाऽतमाऽतमाः ॥ २२॥
तम(प)स्विनीप्रभा ज्योत्स्ना महज्ज्योतिःस्वरूपिणी ।
सुरूपा सद्गतिः(स्वर्गतिः)साध्वी सदसद्रूपराजिता ॥ २३॥
सृष्टिः स्थितिः क्षेमकरी क्षमा क्षामोन्नतस्तनी ।
क्षोणी क्षयकरी क्षीणा शर्व(व)स्था शिववल्लभा ॥ २४॥
दन्तुरा दाडिमप्रीतिर्दया दाम्भिकसूदिनी ।
राक्षसी डाकिनी योग्यायोगिनी योग(गि)वल्लभा ॥ २५॥
कबन्धा कन्धरा कृष्णा(विद्या) कृत्तिका कण्ठकान्तका ।
कलङ्करहिता काली कम्पा काश्मीरवल्लभा ॥ २६॥
काशी कीर्तिप्रदा काञ्चि काश्मीरी कोकिलस्वना ।
प्रभावती महारौद्री रुद्रपत्नी रुजापहा ॥ २७॥
रतिः स्तुतिस्तरीस्तुर्या तोतुलाऽतलवासिनी ।
तपःप्रिया शरच्छ्रेष्ठा पङ्गुपुत्री यमस्वसा ॥ २८॥
यामी यमान्तका याम्या यमुना स्वर्नदी तडित् ।
नारायणी विश्वमाता भवानी पापनाशिनी ॥ २९॥
विगता विगतप्रश्ना कृष्णा कृष्टासिधारिणी ।
वारी वारा वरधरा वरदा वीरसूदिनी ॥ ३०॥
वीरसूर्वामनाकारा दीर्घसूत्रा दयावती ।
दरी धनप्रदा धात्री धात्रीवल्ली महोदरी ॥ ३१॥
गणेश्वरी गया काञ्ची काञ्चीकिङ्किणिघण्टिका ।
माया मायावती मत्ता प्रमत्ता प्रवरेश्वरी ॥ ३२॥
पौरन्दरी शची शीता शीतातपस्वभावजा ।
स्वाभाविकगुणागण्यागाम्भीर्यगुणभूषणा ॥ ३३॥
सूतिः सूर्यकलासुप्ता सप्तसप्तिस्वरूपिणी ।
तेजस्विनी सदानन्दा सभासन्तोषवर्धिनी ॥ ३४॥
तर्पणा कर्षणा होता(त्री) सङ्कल्पाशुभमन्त्रिका ।
दर्भा द्रोणिकला श्रान्ता समिद्धा सुरवेदिका ॥ ३५॥
धूम्राहुतिश्चरमतिश्चामीकररुचिश्चिता ।
चिन्ताऽनलेश्वरी नेलाकरानीलसरस्वती ॥ ३६॥
अपर्णा सुफला यज्ञा सभया निर्भयाऽभया ।
भीमस्वनाभर्गशिखा भास्वतीभाकरा विभा ॥ ३७॥
विभावरी नदी नन्द्या नन्द्यावर्तप्रवर्तिनी ।
पृथ्वीधरा विश्व(ष)धरा विश्वगर्भा प्रवर्तिका ॥ ३८॥
विश्वमाया विश्वमाला विश्वम्भरविलासिनी ।
उरगेशा पद्मनाभा(गा)पद्मनाभप्रसूः प्रजा ॥ ३९॥
तोरणा तुलसी दीक्षा दक्षा दाक्षायणीद्युतिः ।
सम्पुटा शयनाशय्याशासनाशमनान्तका ॥ ४०॥
श्यामाकवर्णा शार्दूलीशम्पाशीतांशुवल्लभा ।
स्तुत्या प्रणीता नियतिः कम्पना कम्पहारिणी ॥ ४१॥
चम्पकाभा चराचीनाऽदीना दीनजनप्रिया ।
वसुन्धरा वासवेशी वसुनाथा वटेश्वरी ॥ ४२॥
समुद्रा सङ्गमा पूर्णाऽन्तराला तरुवासिनी ।
पार्वती पामरी मान्या माननीया मधुप्रिया ॥ ४३॥
माधवी मधुपानस्था मन्दिरा मन्दुरामृगी ।
मोमुषा(मुमूषा) रूरुषारेवारेवतीरमणी रमा ॥ ४४॥
ऋद्धिहस्ता सिद्धिहस्ता अन्नपूर्णा महेश्वरी ।
अन्नरूपा जगज्ज्योतिः समस्तासुरघातिनी ॥ ४५॥
गारुडीगगनालम्बा लम्बमानकचप्रिया ।
पीताम्बरा पीतपुष्पा पूतना गीतवल्लभा ॥ ४६॥
बलाका जगदन्ताच जरा जयवरप्रदा ।
प्रीतिः कठोरवदना करालरदना रसा ॥ ४७॥
जिह्वाहस्ताच बगला प्रणया विनयप्रदा ।
किरी करालवपुषी शेमुषी मक्षिका मषी ॥ ४८॥
उत्तीर्णातर्णिका तीक्ष्णा श्लक्ष्णा कामेश्वरी शिवा ।
शिवपत्नी सरोजाक्षी पद्महस्ता सरस्वती ॥ ४९॥
कमलाक्षी कमलजा करवालविहारिणी ।
कविपूज्या कविगतिः कविरूपा कविप्रिया ॥ ५०॥
कदली कदलीरूपा कदलीवनवासिनी ।
कलप्रीता कलहदा कलहा कलहातुरा ॥ ५१॥
कस्तूरीमृगसंस्थाच कस्तूरीमृगरूपिणी ।
कठोरा करमालाच कठोरकुचधारिणी ॥ ५२॥
यज्ञमाता यज्ञभोक्त्री यज्ञेशी यज्ञसम्भवा ।
यज्ञसिद्धिः क्रियासिद्धिर्यज्ञाङ्गी यज्ञरक्षिका ॥ ५३॥
वैष्णवी विष्णुरूपा च विष्णुमातृस्वरूपिणी ।
विष्णुमाया विशालाक्षी विशालनयनोज्ज्वला ॥ ५४॥
शिवमाता शिवाख्याच शिवदा शिवरूपिणी ।
गायत्री चैव सावित्री ब्रह्माणी ब्रह्मरूपिणी ॥ ५५॥
दुर्गस्था दुर्गरूपाच दुर्गा दुर्गतिनाशिनी ।
माहेश्वरीच सर्वाधा शर्वाणी सर्वमङ्गला ॥ ५६॥
सूर्यकोटिसहस्राभा चन्द्रकोटिनिभानना ।
समुद्रकोटिगम्भीरा वायुकोटिमहाबला ॥ ५७॥
सोमसूर्याग्निमध्यस्था मणिमण्डलवासिनी ।
द्वादशारसरोजस्थासूर्यमण्डलवासिनी ॥ ५८॥
अकलङ्कशशाङ्काभा षोडशारनिवासिनी ।
हृत्पद्मनिलयाऽभीमा महाभैरवनादिनी ॥ ५९॥
वर्णाढ्या वर्णरहिता पञ्चाशद्वर्णभेदिनी ।
भवानी भूतिदा भूतिर्भूतिदात्री च भैरवी ॥ ६०॥
भैरवाचारनिरता भूतभैरवसेविता ।
कामेश्वरी कामरूपा कामतापविमोचिनी ॥ ६१॥
गणेशजननी देवीगणेशवरदायिनी ।
गतिदा गतिहा गीता गौतमी गुरुसेविता ॥ ६२॥
दीनदुःखहरा दीनतापनिर्मूलकारिणी ।
दयाशीला दयासारा दयासागरसंस्थिता ॥ ६३॥
नृत्यप्रिया नृत्यरता नर्तकी नर्तकप्रिया ।
नारायणी नरेन्द्रस्था नरमुण्डास्थिमालिनी ॥ ६४॥
भैरवी भैरवाराध्या भीमा भीमवरप्रदा ।
भुवना भुवनाराध्या भवानी भूतिवर्धिनी ॥ ६५॥
महिषासुरहन्त्री च रक्तबीजविनाशिनी ।
धनुर्बाणधरा नित्या धूम्रलोचननाशिनी ॥ ६६॥
कुलीना कुलमार्गस्था कुलमार्गप्रकाशिनी ।
पञ्चाशद्वर्णबीजाढ्या पञ्चाशन्मुण्डमालिका ॥ ६७॥
षडङ्गयुवतीपूज्या षडङ्गरूपवर्जिता ।
कालमाता कालरात्रिः काली कमलवासिनी ॥ ६८॥
कमला कान्तिरूपाच कामराजेश्वरी क्रिया ।
माया मतिर्महामाया भयदा भयहारिका ॥ ६९॥
नारी नारायणी गण्या नारायणगृहप्रिया ।
मदिरापानसन्तुष्टा मदिरामोदधारिणी ॥ ७०॥
तथ्या पथ्या कृती रथ्या रथस्था विततस्वरा ।
महती रागिणी भार्गी शुचिहासा हरीश्वरी ॥ ७१॥
हरिद्रत्नांशुलसिता लक्ष्मीनायकसुन्दरी ।
अम्बालिकाऽम्बा देवेशी अनघाऽग्निशिखा श्रुतिः ॥ ७२॥
अलसाऽल्पगतिश्चान्त्याऽनन्ताऽनन्तगुणाऽश्रया ।
आद्या चादित्यसङ्काशा आदित्यकुलसुन्दरी ॥ ७३॥
आत्मरूपाऽऽधिशमनीआदिमायाऽऽदिदेवता ।
इन्द्रप्रसूरिनद्योतिरिनाग्निशशिलोचना ॥ ७४॥
इन्द्रावरजसंस्तुत्या इलाचेक्षुरसप्रिया ।
ईश्वरी ईशवनिता ईशा केशववल्लभा ॥ ७५॥
उमा उर्वी उरुभुजा उत्तुङ्गा चोक्षवाहना ।
उत्तङ्का चोत्तमा ध्येया उल्लासाचोरुगर्विणी ॥ ७६॥
उष्माऊणा च गुर्वङ्गी ऊर्ध्वाक्षी ऊर्ध्वमस्तका ।
ऋद्धिरृचा ऋवर्णेशी ऋणहर्त्री ऋचान्तकी ॥ ७७॥
ॠढिजा चारुवस्त्राच ॠणिवासा महालया ।
लृकारा लृक्कुरा लीना लृकारा वरधारिणी ॥ ७८॥
एणाङ्कमुकुटा चेहा चारुचन्द्रकला कला ।
ऐकारगतिरैश्वर्यदायिनी चैश्वरीगतिः ॥ ७९॥
ओङ्कारा बीजरूपा च औत्रिकी वेत्रधारिणी ।
अम्बिका लम्पिका पम्पा अः स्वरोद्गाररूपिणी ॥ ८०॥
कालीच भद्रकाली च कालिका कालवल्लभा ।
कदम्बनिलया कन्था(न्या) काञ्चीमण्डनमण्डिता ॥ ८१॥
कलङ्करहिता कूर्मा काञ्चनाभा करीरगा ।
कनकाचलवासाच कारुण्याकुलमानसा ॥ ८२॥
कुलस्था कौलिनी कुल्या कुरुकुल्ला कपालिनी ।
कपालकुलनिर्विण्णा क्लीङ्कारा कञ्जलोचना ॥ ८३॥
खञ्जनाक्षी खड्गधरा खेटकायुधभूषणा ।
खर्पराढ्या च खलहा खेटिनी खेचरी खगा ॥ ८४॥
खगायुधा खगगतिः खकाराक्षरभूषणा ।
गणाध्यक्षागजगतिर्गणेशजननीगदा ॥ ८५॥
गोधा गदाधर प्राज्यागगनेशी महीमला ।
घुर्घरा घटभूर्घूका घुसृणाभा गणेश्वरी ॥ ८६॥
घनसारप्रिया साम्या घवर्णकृतभूषणा ।
ङान्ताङवर्णमुकुटा कवर्गकृतभूषणा ॥ ८७॥
चान्द्री चान्द्रिस्तुता चार्वी चन्द्रिका चण्डनिःस्वना ।
चञ्चरीकस्वना देवी चञ्चच्चामीकराङ्गदा ॥ ८८॥
छत्रिका छुरिका छञ्छा छत्रचामरभूषणा ।
जङ्कारीजलजिह्वाचजृम्भिकाजलयोगिनी ॥ ८९॥
जटाजूटधराजातिर्जातीपुष्पसमानना ।
जलेश्वरीजगद्ध्येया जानकी जननी जटा ॥ ९०॥
झञ्झा झरी झरत्कारी झणत्काञ्चीरकिङ्कणी ।
झिण्ठिका झम्पकृद् झम्पा झम्पत्रासनिवारिणी ॥ ९१॥
ञाणुरूपाञङ्कहस्ता ञवर्णाक्षरसम्मता ।
टङ्कायुधा महातथ्या टङ्कारकरुणा टसी ॥ ९२॥
ठकुरा ठत्करा ठानी डिण्डीरवसना ढला ।
ढण्ढानिलमयी ढण्डा ढणत्कारकरा ढसा ॥ ९३॥
णान्ताणीलायुधाणम्राणवर्णाक्षरभूषणा ।
तरुणी तुन्दिला तोन्दा तामसी तामसप्रिया ॥ ९४॥
ताम्रानना ताम्रकराताम्राम्बरधरा तुला ।
तापत्रयहरा तापी तैलासक्ता तिलोत्तमा ॥ ९५॥
स्थाणुपत्नीस्थली स्थूला स्थितिः स्थैर्यधरा स्थुला ।
दन्तिनी दन्तुरा दार्वी देवकी देवनायिका ॥ ९६॥
दमिनी शमिनी दण्डया दण्डहस्ता दुरानतिः ।
दुर्वारा दुर्गतिर्दाक्षी द्राक्षा द्राविडवासिनी ॥ ९७॥
दूरस्था दुन्दुभिध्वाना दरदा दरनाशिनी ।
दुःखघ्नी द्रुतगाऽदुष्टा दया दाम्भिक्यनाशिनी ॥ ९८॥
धर्म्या धर्मप्रसूर्धन्या धनदा धातृवल्लभा ।
धनुर्धरा धनुर्वल्ली धानुष्कवरदायिनी ॥ ९९॥
धूमाली धूम्रवदनाधूमश्रीर्धूम्रलोचना ।
नलिनी नर्तकी नान्ता नङ्गा नलिनलोचना ॥ १००॥
निर्मला निगमाचारा निम्नगानगजा निमिः ।
नीलग्रीवा निरीहाच नीपोपवनवासिनी ॥ १०१॥
निरञ्जना निजाजन्या निद्रालुर्नीरवासिनी ।
नटिनी नाट्यनिरता नवनीतप्रियाऽनिला ॥ १०२॥
नारायणी निराकारा निर्लेपा नित्यवल्लभा ।
पद्मावती पद्धकरा पुत्रदा पुत्रवत्सला ॥ १०३॥
परोत्तरा पुरी पाठा पीनश्रोत्रापुलोमजा ।
पुष्पिणी पुस्तककरा पटुः पाठीनवाहना ॥ १०४॥
पापघ्नी शम्पिनी (पुष्पिणी) पाली पल्ली परमसुन्दरी ।
पिशाचीच पिशाचघ्नी पानपात्रधरापुटा ॥ १०५॥
पूर्णिमा पञ्चमी पौत्री पुरूरववरप्रदा ।
पञ्चयज्ञा पश्चशरी पञ्चाशतिमनुप्रिया ॥ १०६॥
पाञ्चाली पञ्चमुद्राच पूजा पूर्णमनोरथा ।
फलिनी फलदात्रीच फल्गुहस्ता फणिप्रिया ॥ १०७॥
फिरङ्गहा स्फीतमतिः स्फीतिः स्फीतिमती स्फुरा ।
बलमाया बलस्तुत्या बिल्वसेना बलाऽबला ॥ १०८॥
बगलेश्वरपूज्या च बलिनी बलवर्धिनी ।
बुद्धमाता बौद्धमतिर्बद्धा बन्धनमोचिनी ॥ १०९॥
भगिनी भगमालाच भगलिङ्गामृतद्रवा ।
भीमेश्वरीच भेरुण्डा भगेशी भगसर्पिणी ॥ ११०॥
भगलिङ्गस्थिताभग्या भाग्यदाभगमालिनी ।
मत्ता मनोहरा मीना मैनाकजननी मुरी ॥ १११॥
मुरली मानवी होत्री महस्विजनमोदिता ।
मत्तमातङ्गगामाद्री मरालगतिरञ्चला ॥ ११२॥
यक्षेश्वरेश्वरी यज्ञा यजुर्वेदप्रियाश्रिता ।
यशोवती यतिस्था च यतात्मा यतिवल्लभा ॥ ११३॥
यवनी यौवनस्थाच यवा यक्षजनाश्रया ।
यज्ञसूत्रप्रदा ज्येष्ठा यज्ञभूर्यूपमूलिनी ॥ ११४॥
रञ्जिताराज्पत्नी च राजसूयफलप्रदा ।
रजोवती रजश्चित्राराज्यदा राज्यवर्धिनी ॥ ११५॥
राज्ञी रात्रिञ्चरेशानी रोगघ्नी त्रिपुरेश्वरी ।
लुलिता लतिका लाप्या लोपाललनलालसा ॥ ११६॥
लाटीरद्रुमवासाच लाटीरद्रुमवर्तिनी ।
लङ्काललज्जटाजूटा लङ्घिता लोकसुन्दरी ॥ ११७॥
लोकेशवरदालेया लयकर्त्री महालया ।
वेदिर्विलग्नावारी च वीणा वेणुर्वनेश्वरी ॥ ११८॥
वन्दमाना ववर्णाढ्या वाराही वीरमातृका ।
शङ्खिनी शङ्खवलया शङ्खायुधधराशमा ॥ ११९॥
शशिमण्डलमध्यस्था शीतलाम्बुनिवासिनी ।
श्मशानस्था महाघोरा श्मशाननिलयेश्वरी ॥ १२०॥
सिन्धुः सूत्रधरा सत्रा समस्तकुलचारिणी ।
सप्तमी सात्त्विकी सत्त्वा सत्रस्थाऽसुरसूदिनी ॥ १२१॥
सुरेश्वरीसम्पदाढ्या समस्ताचलचारिणी ।
समदा सम्मितिः सम्मा सवना सवनेश्वरी ॥ १२२॥
हंसी हरप्रिया हास्या हरिनेत्रा हराम्बिका ।
हेषा हटेश्वरी हेरा हलिनी हलदायिनी ॥ १२३॥
हेहा हाहारवा हाला हालाहलहताशया ।
क्षमा क्षेमप्रदा क्षामा क्षौमाम्बरधरा क्षया ॥ १२४॥
क्षितिः क्षीरप्रिया लक्ष्मीः क्षितिभृत्तनया क्षुधा ।
क्षत्रियी ब्राह्मणी क्षेत्रा क्षपा क्षः बीजमण्डिता ॥ १२५॥
ळङ्क्षः बीजस्वरूपाच क्षकाराक्षरमातृका ।
दुर्गन्धनाशिनी दूर्वा दुर्गमा दुर्गवासिनी ॥ १२६॥
दुर्गा दुर्गार्तिशमनी ॐ ह्रीं दुम्बीजमण्डिता ।
इति नामसहस्रं तु मन्त्रगर्भ महाफलम् ॥ १२७॥
दुर्गाया दुर्गतिहरं सर्वदेवनमस्कृतम् ।
सर्वमन्त्रमयं दिव्यं देवदानवपूजितम् ॥ १२८॥
श्रेयस्करं महापुण्यं महापातकनाशनम् ।
यः पठेत् पाठयेद्वापि शृणोति श्रावयेदपि ॥ १२९॥
समहापातकैर्मुक्तो देवदानवसेवितः ।
इह लोके श्रियं भुक्त्वा परत्र त्रिदिवं व्रजेत् ॥ १३०॥
दुर्गानामसहस्रं तु मूलमन्त्रैकसाधनम् ।
अर्धरात्रे पठेद्वीरो मधुरस्मयसेवितः ॥ १३१॥
त्रिवारं वर्मपूर्वं तु भवेद्वागीशसन्निभः ।
यः पठेद् देवि मध्याह्ने स्रीयुतो मुक्तकुन्तलः ॥ १३२॥
तस्य वैरिकुलं त्रस्येद् दर्शनाद् दैत्यसूदिनि ।
दहनादिव देवेशि पतङ्गकुलमद्रिजे ॥ १३३॥
यः पठेद्वेतसीमूले सायं पूजितभैरवः ।
तस्यास्यकुहराद् वाणी निःसरेद्गद्यपद्यभाक् ॥ १३४॥
यः पठेत् सततं देवि शयने स्त्रीरताकुलः ।
स भवेद्वैरिविध्वंसी धनेन धनदोपमः ॥ १३५॥
वाग्भिर्वागीशसदृशः कवित्वेन सितोपमः ।
तेजसा सूर्यसङ्काशोयशसा शशिसन्निभः ॥ १३६॥
बलेन वायुतुल्योऽपिलक्ष्म्या गीर्वाणनायकः ।
देवि किं बहुनोक्तेन स भवेद्भैरवोपमः ॥ १३७॥
स्तम्भनाकर्षणोच्चाट-वशीकरणकक्षमः ।
रवौ भूर्जे लिखेद् देवि निशीथे वाष्टगन्धकैः ॥ १३८॥
सस्तन्यरेतोराजस्कैः साधको मन्त्रसाधकः ।
लिखित्वा वेष्टयेन्नामसहस्रमणिमीश्वरि ॥ १३९॥
श्वेतसूत्रेण संवेष्टय लाक्षया परिवेष्टयेत् ।
सुवर्णरजताद्यैश्च वेष्टयेत् पीतसूत्रकैः ॥ १४०॥
सम्पूज्य गुटिकां देवि शुभेऽह्निसाधकोत्तमः ।
धारयेन्मूर्ध्नि वा बाहौ गुटिकां कामदायिनीम् ॥ १४१॥
रणे रिपून् विजित्याशु कल्याणीगृहमाविशेत् ।
वन्ध्या वामभुजे धृत्वा कृत्वा साधकपूजनम् ॥ १४२॥
पुत्रान् लभेन्महादेवि साक्षाद्वैश्रवणोपमान् ।
गुटिकैषा महादिव्या गोप्या कामफलप्रदा ॥ १४३॥
साधकैः सततं पूज्या साक्षाद्दुर्गास्वरूपिणी ।
योऽर्चयेत् साधको दुर्गां गुटिकां धारयेत् प्रिये ॥ १४४॥
पठेद्वर्म शिवे मन्त्रनामसाहस्रिकीं पराम् ।
अङ्गस्तोत्रं फलं तस्य देवि वक्ष्येऽधुना शृणु ॥ १४५॥
वने राजकुले वापि दुर्भिक्षेशत्रुसङ्कटे ।
अरण्ये प्रान्तरे दुर्गे श्मशाने सिन्धुसङ्कटे ॥ १४६॥
वात्ये यक्षपिशाचादिभूतप्रेतभये तथा ।
वीरो विगतभीर्देवि सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ १४७॥
स्तम्भयेद्वातसूर्याम्बुचन्द्रादीन् साधकोत्तमः ।
मोहयेत् त्रिजगत् सद्यः कान्ताश्चाकर्षयेद् ध्रुवम् ॥ १४८॥
मारयेदखिलाञ्छत्रू नुच्चाटयति वैरिणः ।
वशयेद् देवताः सद्यः किं पुनर्मानवांश्छिवे ॥ १४९॥
शमयेदखिलान् रोगान् महोत्पातानुपद्रवान् ।
किं किं न लभते वीरो दुर्गाञ्चाङ्गपूजनात् ॥ १५०॥
इदं रहस्यं दुर्गाया अष्टाक्षर्या महेश्वरि ।
सर्वस्वंसारतत्त्वञ्च मूलविद्यामयं परम् ॥ १५१॥
महाचीनक्रमस्थानां साधकानां यशस्करम् ।
पठेत् सम्पूजयेद्देव्या मन्त्रनामसहस्रकम् ॥ १५२॥
इदं सारं हि तन्त्राणां तत्त्वानां तत्त्वमुत्तमम् ।
दुर्गानामसहस्रं तु तव भक्त्या प्रकाशितम् ॥ १५३॥
अभक्ताय न दातव्यं गोप्तव्यं पशुसङ्कटे ।
अभक्तेभ्योऽपि पुत्रेभ्यो दत्त्वा नरकमाप्नुयात् ॥ १५४॥
दीक्षिताय कुलीनाय गुरुभक्तिरताय च ।
शान्ताय भक्तियुक्ताय देयं नामसहस्रकम् ॥ १५५॥
विन दानं न गृह्णीयान्न दद्याद् दक्षिणां विना ।
दत्त्वा गृहीत्वाप्युभयोः सिद्धिहानिर्भवेद् ध्रुवम् ॥ १५६॥
इदं नामसहस्रं ते गुप्तं गोप्यतमं शिवे ।
तत्त्वं भक्त्या मयाख्यातं गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥ १५७॥
इति श्रीरुद्रयामलान्तर्गतं श्रीदुर्गासहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।