Shri Durga Manas Puja माँ दुर्गा की मानस पूजा एक मानसिक आराधना की यात्रा। माँ दुर्गा की मानस पूजा एक विशेष प्रकार की मानसिक आराधना है, जिसमें साधक अपने मन, ध्यान और कल्पना के द्वारा माता दुर्गा की पूजा करता है। यह पूजा विशेष रूप से तब की जाती है जब शारीरिक रूप से पूजा करने की स्थिति न हो साधक केवल मन से ही माँ का ध्यान कर उन्हें प्रसन्न करना चाहता हो जीवन में मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करना हो माता दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना हो मानस पूजा में साधक अपनी अंतरात्मा और हृदय से माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए, उनके प्रतीकात्मक स्वरूप की पूजा करता है। इसमें भौतिक सामग्री की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि साधक मन ही मन माँ को फूल, जल, धूप, दीप और अन्य पूजा सामग्री अर्पित करता है।
माँ दुर्गा की मानस पूजा के ६ प्रमुख लाभ:
माँ दुर्गा की मानस पूजा करने से साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
1. विघ्न-बाधाओं का नाश – माँ दुर्गा विघ्नों की विनाशिनी और साधकों की रक्षक माँ दुर्गा की महिमा अपरम्पार है, जो साधकों के जीवन में खुशियों और समृद्धि का संचार करती हैं। वह विघ्नों की विनाशिनी हैं, जो अपने भक्तों के जीवन की बाधाओं और कठिनाइयों को दूर कर उन्हें सफलता और समृद्धि की ओर ले जाती हैं।
2. आत्म-ज्ञान और आत्म-विश्वास का विकास – मानस पूजा एक ऐसी साधना है जो साधक को उसके आत्म-ज्ञान की ओर ले जाती है। इस पूजा के माध्यम से, साधक अपने अंदर की गहराई को समझता है, अपने विचारों और भावनाओं को जानता है, और अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानता है।
3. मानसिक शांति और संतुलन – आत्मशांति की ओर ले जाते मार्ग मानसिक शांति और संतुलन हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति और स्थिरता प्रदान करता है। मानस पूजा के माध्यम से, हम इस शांति और संतुलन को प्राप्त कर सकते हैं।
4. आध्यात्मिक उन्नति – मानस पूजा की आध्यात्मिक यात्रा: आत्म-साक्षात्कार से मोक्ष तक मानस पूजा एक आध्यात्मिक साधना है, जो साधक को उसके आत्मिक स्वरूप से जोड़ती है। इस पूजा के माध्यम से, साधक अपने अंदर की गहराई को समझता है और अपनी आध्यात्मिक प्रगति को बढ़ावा देता है।
5. मनोबल और साहस का विकास – मनोबल और साहस का संचार माँ दुर्गा शक्ति की देवी हैं, जो साधकों को साहस, धैर्य, और आत्मबल प्रदान करती हैं। उनकी मानस पूजा से साधकों के जीवन में निम्नलिखित परिवर्तन आते हैं।
6. सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह – माँ दुर्गा की मानस पूजा से साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। नकारात्मक विचारों और भावनाओं को दूर करता है। जीवन में संतुलन और शांति का अनुभव कराता है। साधक को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करता है। आत्म-ज्ञान और आत्म-सम्मान को बढ़ावा देता है।
1. Shri Durga Manas Puja | माँ दुर्गा की मानस पूजा
उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां
नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके।
आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो
मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥१॥
देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं
चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्।
एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं
गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥२॥
पश्चाद्देवि गृहाण शम्भुगृहिणि श्रीसुन्दरि प्रायशो
गन्धद्रव्यसमूहनिर्भरतरं धात्रीफलं निर्मलम्।
तत्केशान् परिशोध्य कङ्कतिकया मन्दाकिनीस्रोतसि
स्नात्वा प्रोज्ज्वलगन्धकं भवतु हे श्रीसुन्दरि त्वन्मुदे॥३॥
सुराधिपतिकामिनीकरसरोजनालीधृतां
सचन्दनसकुङ्कुमागुरुभरेण विभ्राजिताम्।
महापरिमलोज्ज्वलां सरसशुद्धकस्तूरिकां
गृहाण वरदायिनि त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे॥४॥
गन्धर्वामरकिन्नरप्रियतमासंतानहस्ताम्बुज-
प्रस्तारैर्ध्रियमाणमुत्तमतरं काश्मीरजापिञ्जरम्।
मातर्भास्वरभानुमण्डललसत्कान्तिप्रदानोज्ज्वलं
चैतन्निर्मलमातनोतु वसनं श्रीसुन्दरि त्वन्मुदम्॥५॥
स्वर्णाकल्पितकुण्डले श्रुतियुगे हस्ताम्बुजे मुद्रिका
मध्ये सारसना नितम्बफलके मञ्जीरमङ्घ्रिद्वये।
हारो वक्षसि कङ्कणौ क्वणरणत्कारौ करद्वन्द्वके
विन्यस्तं मुकुटं शिरस्यनुदिनं दत्तोन्मदं स्तूयताम्॥६॥
ग्रीवायां धृतकान्तिकान्तपटलं ग्रैवेयकं सुन्दरं
सिन्दूरं विलसल्ललाटफलके सौन्दर्यमुद्राधरम्।
राजत्कज्जलमुज्ज्वलोत्पलदलश्रीमोचने लोचने
तद्दिव्यौषधिनिर्मितं रचयतु श्रीशाम्भवि श्रीप्रदे॥७॥
अमन्दतरमन्दरोन्मथितदुग्धसिन्धूद्भवं
निशाकरकरोपमं त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे।
गृहाण मुखमीक्षतुं मुकुरबिम्बमाविद्रुमै-
र्विनिर्मितमघच्छिदे रतिकराम्बुजस्थायिनम्॥८॥
कस्तूरीद्रवचन्दनागुरुसुधाधाराभिराप्लावितं
चञ्चच्चम्पकपाटलादिसुरभिद्रव्यैः सुगन्धीकृतम्।
देवस्त्रीगणमस्तकस्थितमहारत्नादिकुम्भव्रजै-
रम्भःशाम्भवि संभ्रमेण विमलं दत्तं गृहाणाम्बिके॥९॥
कह्लारोत्पलनागकेसरसरोजाख्यावलीमालती-
मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वमारादिभिः।
पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा
ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये॥१०॥
मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजः कर्पूरशैलेयजै-
र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः।
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥११॥
घृतद्रवपरिस्फुरद्रुचिररत्नयष्ट्यान्वितो
महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः।
सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-
स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे॥१२॥
जातीसौरभनिर्भरं रुचिकरं शाल्योदनं निर्मलं
युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिद्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः।
पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं
नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥१३॥
लवङ्गकलिकोज्ज्वलं बहुलनागवल्लीदलं
सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम्।
सुधामधुरिमाकुलं रुचिररत्नपात्रस्थितं
गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम्॥१४॥
शरत्प्रभवचन्द्रमः स्फुरितचन्द्रिकासुन्दरं
गलत्सुरतरङ्गिणीललितमौक्तिकाडम्बरम्।
गृहाण नवकाञ्चनप्रभवदण्डखण्डोज्ज्वलं
महात्रिपुरसुन्दरि प्रकटमातपत्रं महत्॥१५॥
मातस्त्वन्मुदमातनोतु सुभगस्त्रीभिः सदाऽऽन्दोलितं
शुभ्रं चामरमिन्दुकुन्दसदृशं प्रस्वेददुःखापहम्।
सद्योऽगस्त्यवसिष्ठनारदशुकव्यासादिवाल्मीकिभिः
स्वे चित्ते क्रियमाण एव कुरुतां शर्माणि वेदध्वनिः॥१६॥
स्वर्गाङ्गणे वेणुमृदङ्गशङ्खभेरीनिनादैरुपगीयमाना।
कोलाहलैराकलिता तवास्तु विद्याधरीनृत्यकला सुखाय॥१७॥
देवि भक्तिरसभावितवृत्ते प्रीयतां यदि कुतोऽपि लभ्यते।
तत्र लौल्यमपि सत्फलमेकं जन्मकोटिभिरपीह न लभ्यम्॥१८॥
एतैः षोडशभिः पद्यैरुपचारोपकल्पितैः।
यः परां देवतां स्तौति स तेषां फलमाप्नुयात्॥१९॥
इति श्रीमच्छंकराचार्य विरचिता श्री दुर्गामानसपूजा समाप्ता।
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2. Shri Durga Manas Puja | माँ दुर्गा की मानस पूजा हिंदी अनुवाद सहित
उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां
नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके।
आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो
मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥१॥
हिंदी अनुवाद – माता त्रिपुरसुंदरी! आपके भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाली कल्पलता, आपके श्रीचरणों में यह पादुका श्रद्धा के साथ समर्पित की जा रही है। कृपया इसे स्वीकार करें। इस पादुका को उत्तम चंदन, कुंकुम और लाल जल की धारा से धोया गया है। विभिन्न प्रकार की बहुमूल्य मणियों और मूँगों से इसे सजाया गया है, और अनेक देवांगनाओं ने अपने पवित्र हाथों से इसे भक्तिपूर्वक धोकर स्वच्छ बनाया है। माता, मुझे आशीर्वाद दें, मेरे जीवन को अधुरा और पूर्ण करें। मेरी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें और मुझे आपकी शरण में रखें। आपकी कृपा से, मेरा जीवन मंगलमय और सार्थक हो।
देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं
चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्।
एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं
गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥२॥
हिंदी अनुवाद – माँ! देवताओं ने आपके लिए यह दिव्य सिंहासन लाकर रख दिया है, इस पर विराजो। यह सिंहासन देवराज इंद्र सहित अन्य देवताओं द्वारा पूजित है। इसका निर्माण राशि-राशि सुवर्ण से हुआ है, जो आपकी कान्तिसे दमकता है और मनोहर प्रभासे सदा प्रकाशमान रहता है। इसके अलावा, दिव्य युवतियाँ आपकी सेवा में चम्पा और केतकी की सुगंध से भरा अत्यंत निर्मल तेल और सुगंधयुक्त उबटन प्रस्तुत कर रही हैं। कृपया इसे स्वीकार करो।
पश्चाद्देवि गृहाण शम्भुगृहिणि श्रीसुन्दरि प्रायशो
गन्धद्रव्यसमूहनिर्भरतरं धात्रीफलं निर्मलम्।
तत्केशान् परिशोध्य कङ्कतिकया मन्दाकिनीस्रोतसि
स्नात्वा प्रोज्ज्वलगन्धकं भवतु हे श्रीसुन्दरि त्वन्मुदे॥३॥
हिंदी अनुवाद – देवी! अब यह शुद्ध आँवले का फल ग्रहण करो। हे शिवप्रिये! हे त्रिपुरसुंदरी! इस आँवले में सभी सुगंधित पदार्थ मिलाए गए हैं, जिससे यह अत्यंत सुगंधित हो गया है। इसे अपने बालों में लगाकर कंघी से झाड़ लो और गंगाजी की पवित्र धारा में स्नान करो। तत्पश्चात, यह दिव्य गंध तुम्हारी सेवा में प्रस्तुत है, जो तुम्हारे आनंद को बढ़ाने वाला है।
सुराधिपतिकामिनीकरसरोजनालीधृतां
सचन्दनसकुङ्कुमागुरुभरेण विभ्राजिताम्।
महापरिमलोज्ज्वलां सरसशुद्धकस्तूरिकां
गृहाण वरदायिनि त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे॥४॥
हिंदी अनुवाद – संपत्ति प्रदान करनेवाली वरदायिनी त्रिपुरसुंदरी! यह शुद्ध और सुरभित कस्तूरी स्वीकार करो। देवराज इंद्र की पत्नी महारानी शची स्वयं इसे अपने हाथों में लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हैं। इस कस्तूरी में चंदन, कुंकुम और अगुरु का मेल होने से इसकी शोभा और भी बढ़ गई है। इसकी अत्यधिक सुगंध इसे बहुत ही मनोहर बनाती है। हे त्रिपुरसुंदरी, इस कस्तूरी को ग्रहण करकार अपनी सुगंध और शोभा को बढ़ाएं।
गन्धर्वामरकिन्नरप्रियतमासंतानहस्ताम्बुज-
प्रस्तारैर्ध्रियमाणमुत्तमतरं काश्मीरजापिञ्जरम्।
मातर्भास्वरभानुमण्डललसत्कान्तिप्रदानोज्ज्वलं
चैतन्निर्मलमातनोतु वसनं श्रीसुन्दरि त्वन्मुदम्॥५॥
हिंदी अनुवाद – माँ श्रीसुन्दरी! यह अत्यंत उत्तम और निर्मल वस्त्र आपकी सेवा में समर्पित है, जो आपके हर्ष को बढ़ावे। हे माता! गंधर्व, देवता और किन्नरों की प्रेयसी सुंदरियाँ इसे अपने फैलाए हुए कर कमलों में धारण किए खड़ी हैं। यह केसर में रंगा हुआ पीताम्बर है, जिससे सूर्यमंडल की दिव्य कान्ति निकल रही है, जो इसकी शोभा को बढ़ा रही है। इसकी दिव्य प्रकाशमान कान्ति से यह वस्त्र बहुत ही सुशोभित हो रहा है, और आपकी सुंदरता को और भी बढ़ावा देगा।
स्वर्णाकल्पितकुण्डले श्रुतियुगे हस्ताम्बुजे मुद्रिका
मध्ये सारसना नितम्बफलके मञ्जीरमङ्घ्रिद्वये।
हारो वक्षसि कङ्कणौ क्वणरणत्कारौ करद्वन्द्वके
विन्यस्तं मुकुटं शिरस्यनुदिनं दत्तोन्मदं स्तूयताम्॥६॥
हिंदी अनुवाद – आपके दोनों कानों में सोने के कुंडल झिलमिलाते रहें, आपके कर-कमल की एक अंगुली में अंगूठी शोभा पाए, कटिभाग में नितंबों पर करधनी सुहावे, दोनों चरणों में मंजीर मुखरित होता रहे, वक्षःस्थल में हार सुशोभित हो और दोनों कलाइयों में कंकन खनखनाते रहें। आपके मस्तक पर रखा हुआ दिव्य मुकुट प्रतिदिन आनंद प्रदान करे। ये सब आभूषण प्रशंसा के योग्य हैं। हे माता त्रिपुरसुंदरी, आप इन आभूषणों से सुशोभित होकर अपनी सुंदरता और आनंद को बढ़ाएं।
ग्रीवायां धृतकान्तिकान्तपटलं ग्रैवेयकं सुन्दरं
सिन्दूरं विलसल्ललाटफलके सौन्दर्यमुद्राधरम्।
राजत्कज्जलमुज्ज्वलोत्पलदलश्रीमोचने लोचने
तद्दिव्यौषधिनिर्मितं रचयतु श्रीशाम्भवि श्रीप्रदे॥७॥
हिंदी अनुवाद – धन देनेवाली शिवप्रिया पार्वती! अपने गले में चमकीली और सुंदर हँसली धारण करो। ललाट के मध्यभाग में सौंदर्य की मुद्रा को प्रकट करने वाले सिंदूर की बेंदी लगाओ। तथा अपने नेत्रों में दिव्य ओषधियों से तैयार किया गया काजल लगा लो, जो पद्मपत्र की शोभा को भी तिरस्कृत कर देता है। हे माता त्रिपुरसुंदरी, आप इन आभूषणों और सौंदर्य प्रसाधनों से सुशोभित होकर अपनी सुंदरता और आनंद को बढ़ाएं।
अमन्दतरमन्दरोन्मथितदुग्धसिन्धूद्भवं
निशाकरकरोपमं त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे।
गृहाण मुखमीक्षतुं मुकुरबिम्बमाविद्रुमै-
र्विनिर्मितमघच्छिदे रतिकराम्बुजस्थायिनम्॥८॥
हिंदी अनुवाद – पापों का नाश करनेवाली सम्पत्तिदायिनी त्रिपुरसुंदरी! अपने मुख की शोभा निहारने के लिए यह दिव्य दर्पण स्वीकार करो। इसे साक्षात रति रानी अपने कर कमलों में लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हैं। इस दर्पण के चारों ओर मूँगे जड़े हैं, जो इसकी शोभा को बढ़ाते हैं। यह दर्पण क्षीरसमुद्र के मथाने से प्रकट हुआ था, जब मन्दराचल की मथानी से उसे प्रचण्ड वेग से मथा गया था। यह दर्पण चंद्रमा की किरणों के समान उज्ज्वल है, जो आपकी सुंदरता को और भी बढ़ावा देगा। हे माता त्रिपुरसुंदरी, आप इस दिव्य दर्पण में अपनी सुंदरता का दर्शन करें और अपने आनंद को बढ़ाएं।
कस्तूरीद्रवचन्दनागुरुसुधाधाराभिराप्लावितं
चञ्चच्चम्पकपाटलादिसुरभिद्रव्यैः सुगन्धीकृतम्।
देवस्त्रीगणमस्तकस्थितमहारत्नादिकुम्भव्रजै-
रम्भःशाम्भवि संभ्रमेण विमलं दत्तं गृहाणाम्बिके॥९॥
हिंदी अनुवाद – भगवान शंकर की धर्मपत्नी पार्वती देवी! देवांगनाओं के मस्तक पर रखे हुए बहुमूल्य रत्नमय कलशों से शीघ्रता से अर्पित किया जाने वाला यह शुद्ध जल स्वीकार करो। इस जल को चंपा, गुलाब और अन्य सुगंधित द्रव्यों से सुवासित किया गया है और इसमें कस्तूरी रस, चंदन, अगुरु और सुधा की धारा से भरपूर है। यह जल आपकी पवित्रता और सुंदरता को बढ़ावा देगा और आपके आनंद को बढ़ाएगा। हे माता त्रिपुरसुंदरी, आप इस दिव्य जल को ग्रहण करके अपनी शोभा और सौंदर्य को और भी बढ़ाएं।
कह्लारोत्पलनागकेसरसरोजाख्यावलीमालती-
मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वमारादिभिः।
पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा
ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये॥१०॥
हिंदी अनुवाद – मैं कहार, उत्पल, नागकेसर, कमल, मालती, मल्लिका, कुमुद, केतकी और लाल कनेर आदि सुगंधित फूलों से, सुगंधित पुष्पमालाओं से और नाना प्रकार के रसों की धारा से, लाल कमल के भीतर निवास करने वाली श्री चण्डिका देवी की पूजा करता हूँ। हे माता चण्डिका, आपकी सुंदरता और महिमा को नमन है! आपकी पूजा से मुझे शक्ति और संरक्षण प्राप्त हो और मेरे जीवन में सुख और समृद्धि का प्रकाश फैले।
मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजः कर्पूरशैलेयजै-
र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः।
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥११॥
हिंदी अनुवाद – श्रीचण्डिका देवी! देववधुओं द्वारा तैयार किया गया यह दिव्य धूप आपकी प्रसन्नता बढ़ाने वाला हो। यह धूप रत्नमय पात्र में रखा हुआ है, जो सुगंध का निवासस्थान है और आपको संतोष प्रदान करेगा। इसमें जटामांसी, गुग्गुल, चंदन, अगुरु-चूर्ण, कपूर, शिलाजीत, मधु, कुंकुम और घी मिलाकर उत्तम रीति से बनाया गया है। हे माता चण्डिका, यह दिव्य धूप आपकी महिमा को बढ़ावा देगा और आपके प्रेम और कृपा को प्रकट करेगा। आपकी प्रसन्नता से मुझे शक्ति और संरक्षण प्राप्त हो और मेरे जीवन में सुख और समृद्धि का प्रकाश फैले।
घृतद्रवपरिस्फुरद्रुचिररत्नयष्ट्यान्वितो
महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः।
सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-
स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे॥१२॥
हिंदी अनुवाद – देवी त्रिपुरसुंदरी! आपकी प्रसन्नता के लिए यहाँ यह दीप प्रकाशित हो रहा है। यह घी से जलता है, जो आपकी सुंदरता और ज्ञान को बढ़ावा देता है। इसकी दीयट में सुंदर रत्न का डंडा लगा है, जो आपकी महिमा को प्रकट करता है। इसे देवांगनाओं ने बनाया है, जो आपकी सेवा में समर्पित हैं। यह दीपक सुवर्ण के चषक में जलाया गया है, जो आपकी दिव्यता को दर्शाता है। इसमें कपूर के साथ बत्ती रखी है, जो आपकी पवित्रता और शुद्धता को बढ़ावा देती है। यह दीपक भारी-से-भारी अंधकार का भी नाश करने वाला है, जो आपकी ज्ञान और प्रकाश की शक्ति को प्रकट करता है। हे माता त्रिपुरसुंदरी, आप इस दीपक के प्रकाश से अपनी सुंदरता और महिमा को बढ़ाएं और मुझे भी आपकी कृपा और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें।
जातीसौरभनिर्भरं रुचिकरं शाल्योदनं निर्मलं
युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिद्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः।
पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं
नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥१३॥
हिंदी अनुवाद – श्रीचण्डिका देवी! देववधुओं ने आपकी प्रसन्नता के लिए यह दिव्य नैवेद्य तैयार किया है, जिसमें अगहनी के चावल का स्वच्छ भात है, जो बहुत ही रुचिकर और चमेली की सुगंध से वासित है। साथ ही हींग, मिर्च और जीरा आदि सुगंधित द्रव्यों से छौंक बघारकर बनाए गए नाना प्रकार के व्यंजन भी हैं, जिसमें भांति-भांति के पकवान, खीर, मधु, दही और घी का भी मेल है। यह नैवेद्य आपकी प्रसन्नता और संतुष्टि के लिए अर्पित किया गया है, जिससे आपकी कृपा और आशीर्वाद मुझ पर और सभी जीवों पर बरसे। हे माता चण्डिका, आप इस दिव्य नैवेद्य को स्वीकार करें और मुझे अपनी कृपा और संरक्षण प्रदान करें।
लवङ्गकलिकोज्ज्वलं बहुलनागवल्लीदलं
सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम्।
सुधामधुरिमाकुलं रुचिररत्नपात्रस्थितं
गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम्॥१४॥
हिंदी अनुवाद – माँ! सुंदर रत्नमय पात्र में सजाकर रखा हुआ यह दिव्य ताम्बूल अपने मुख में ग्रहण करो। लवंग की कली चुभोकर इसके बीड़े लगाए गए हैं, जो बहुत सुंदर और आकर्षक लगते हैं। इसमें पान के पत्तों का उपयोग किया गया है, जो आपकी सुंदरता और स्वाद को बढ़ाते हैं। इन बीड़ों में कोमल जावित्री, कपूर और सोपारी पड़े हैं, जो आपकी प्रसन्नता और संतुष्टि को बढ़ावा देते हैं। यह ताम्बूल सुधा के माधुर्य से परिपूर्ण है, जो आपके हृदय को आनंद और सुख से भर देगा। हे माता चण्डिका, आप इस दिव्य ताम्बूल को स्वीकार करें और मुझे अपनी कृपा और संरक्षण प्रदान करें। आपकी प्रसन्नता से मेरे जीवन में सुख, समृद्धि और आनंद का प्रकाश फैले।
शरत्प्रभवचन्द्रमः स्फुरितचन्द्रिकासुन्दरं
गलत्सुरतरङ्गिणीललितमौक्तिकाडम्बरम्।
गृहाण नवकाञ्चनप्रभवदण्डखण्डोज्ज्वलं
महात्रिपुरसुन्दरि प्रकटमातपत्रं महत्॥१५॥
हिंदी अनुवाद – महात्रिपुरसुन्दरी माता पार्वती! आपके सामने यह विशाल एवं दिव्य छत्र प्रकट हुआ है, इसे ग्रहण करो। यह शरत्काल के चंद्रमा की चटकीली चांदनी के समान सुंदर है, जिसमें लगे हुए सुंदर मोतियों की झालर ऐसी जान पड़ती है, मानो देवनदी गंगा का स्रोत ऊपर से नीचे गिर रहा हो। यह छत्र सुवर्णमय दंड के कारण बहुत शोभा पा रहा है, जो आपकी महिमा और सुंदरता को और भी बढ़ावा देता है। हे माता त्रिपुरसुंदरी, आप इस दिव्य छत्र को स्वीकार करें और मुझे अपनी कृपा और संरक्षण प्रदान करें। आपकी छत्रछाया में मुझे सुख, समृद्धि और आनंद का प्रकाश फैले।
मातस्त्वन्मुदमातनोतु सुभगस्त्रीभिः सदाऽऽन्दोलितं
शुभ्रं चामरमिन्दुकुन्दसदृशं प्रस्वेददुःखापहम्।
सद्योऽगस्त्यवसिष्ठनारदशुकव्यासादिवाल्मीकिभिः
स्वे चित्ते क्रियमाण एव कुरुतां शर्माणि वेदध्वनिः॥१६॥
हिंदी अनुवाद – माँ! सुंदरी स्त्रियों के हाथों से निरंतर डुलाया जाने वाला यह श्वेत चँवर, जो चंद्रमा और कुंद के समान उज्ज्वल और पसीने के कष्ट को दूर करने वाला है, तुम्हारे हर्ष को बढ़ावे और तुम्हारी सुंदरता को और भी बढ़ाए। इसके सिवा, महर्षि अगस्त्य, वसिष्ठ, नारद, शुक, व्यास आदि तथा वाल्मीकि मुनि अपने-अपने चित्त में जो वेद मंत्रों के उच्चारण का विचार करते हैं, उनकी वह मनःसंकल्पित वेद ध्वनि तुम्हारे आनंद की वृद्धि करे और तुम्हारे हृदय को आनंदित करे। हे माता त्रिपुरसुंदरी, आप इस दिव्य चँवर और वेद ध्वनि को स्वीकार करें और मुझे अपनी कृपा और संरक्षण प्रदान करें। आपकी प्रसन्नता से मेरे जीवन में सुख, समृद्धि और आनंद का प्रकाश फैले।
स्वर्गाङ्गणे वेणुमृदङ्गशङ्खभेरीनिनादैरुपगीयमाना।
कोलाहलैराकलिता तवास्तु विद्याधरीनृत्यकला सुखाय॥१७॥
हिंदी अनुवाद – हे माता त्रिपुरसुंदरी! स्वर्ग के आंगन में वेणु, मृदंग, शंख तथा भेरी की मधुर ध्वनि के साथ जो संगीत होता है, और जिसमें अनेक प्रकार के कोलाहल का शब्द व्याप्त रहता है, वह विद्याधरी द्वारा प्रदर्शित नृत्य-कला तुम्हारे सुख की वृद्धि करे, और तुम्हारे हृदय को आनंद और संतुष्टि से भर दे। आपकी महिमा को बढ़ाने वाली यह दिव्य संगीत और नृत्य-कला, आपको आनंदित करे और आपकी कृपा को प्रकट करे। हे माता! आपकी प्रसन्नता से मेरे जीवन में सुख, समृद्धि और आनंद का प्रकाश फैले।
देवि भक्तिरसभावितवृत्ते प्रीयतां यदि कुतोऽपि लभ्यते।
तत्र लौल्यमपि सत्फलमेकं जन्मकोटिभिरपीह न लभ्यम्॥१८॥
हिंदी अनुवाद – हे देवी! तुम्हारे भक्ति-रस से भावित इस पद्यमय स्तोत्रमें यदि कहीं से भी कुछ भक्ति का लेश मिले, तो उसीसे प्रसन्न हो जाओ और मेरी भक्ति को स्वीकार करो। माँ! तुम्हारी भक्ति के लिए चित्त में जो आकुलता होती है, वही एकमात्र जीवन का फल है, जो कोटि-कोटि जन्म धारण करने पर भी इस संसार में तुम्हारी कृपा के बिना सुलभ नहीं होती। हे माता त्रिपुरसुंदरी! आपकी कृपा से ही मुझे आपकी भक्ति की प्राप्ति हुई है, आपकी भक्ति में मेरा जीवन सार्थक हो गया है। आपकी प्रसन्नता से मेरे जीवन में सुख, समृद्धि और आनंद का प्रकाश फैले।
एतैः षोडशभिः पद्यैरुपचारोपकल्पितैः।
यः परां देवतां स्तौति स तेषां फलमाप्नुयात्॥१९॥
हिंदी अनुवाद – इन उपचार-कल्पित सोलह पद्यों से जो परा देवता भगवती त्रिपुरसुंदरी का स्तवन करता है, वह उन उपचारों के समर्पण का फल प्राप्त करता है, जिसमें माता की कृपा, सुख, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है। हे माता त्रिपुरसुंदरी! आपकी महिमा और सुंदरता का वर्णन करने वाले इन पद्यों को, मैं आपके चरणों में समर्पित करता हूँ। आपकी कृपा से मुझे आपकी भक्ति और सेवा का अवसर मिले, और मेरा जीवन आपकी सेवा में समर्पित हो।
इति श्रीमच्छंकराचार्य विरचिता श्री दुर्गामानसपूजा समाप्ता।