Rath Yatra 2025 Puri क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान खुद रथ पर बैठकर नगर भ्रमण क्यों करते हैं? और वह भी इतने भव्य रूप में, जहाँ लाखों भक्त खींचते हैं उनके रथ को?
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पुरी की रथ यात्रा की — एक ऐसी परंपरा जो केवल धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक अनुभूति से भरपूर है। हर साल यह पर्व जैसे-जैसे नजदीक आता है, श्रद्धा की लहरें पुरी से निकलकर पूरे भारत में फैल जाती हैं।
आइए जानते हैं, रथ यात्रा 2025 को लेकर क्या है खास, इसका इतिहास क्या है और यह परंपरा इतनी अद्भुत क्यों मानी जाती है।
रथ यात्रा 2025 की तिथि और विशेषता
इस वर्ष पुरी रथ यात्रा 27 जून 2025 (आषाढ़ शुक्ल द्वितीया), शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा, विशाल रथों पर सवार होकर श्री मंदिर से निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
यह यात्रा लगभग 3 किलोमीटर लंबी होती है, पर भावनाओं की गहराई इसकी दूरी से कहीं अधिक होती है। भक्तों की श्रद्धा का ये आलम होता है कि वे रथ की रस्सी पकड़ने के लिए घंटों इंतज़ार करते हैं।
तीनों रथों की विशेषता क्या है?
पुरी की रथ यात्रा में तीन रथ निकलते हैं – हर रथ का रंग, नाम और आकार अलग होता है।
1. नन्दिघोष (जगन्नाथ जी का रथ): 16 पहियों वाला, लाल और पीले रंग का।
2. तालध्वज (बलभद्र जी का रथ): 14 पहियों वाला, हरा और लाल रंग का।
3. दर्पदलन (सुभद्रा जी का रथ): 12 पहियों वाला, काले और लाल रंग का।
इन रथों का निर्माण हर साल नए सिरे से किया जाता है। लकड़ी, रस्सी, कपड़ा और सजावट सब कुछ पारंपरिक विधि से किया जाता है। रथ बनाने का काम भी एक आध्यात्मिक साधना जैसा माना जाता है।
इतिहास में झांकें तो
रथ यात्रा की परंपरा हजारों साल पुरानी मानी जाती है। कहा जाता है कि राजा इन्द्रद्युम्न ने जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया और तभी से यह यात्रा प्रारंभ हुई।
स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण जैसे संस्कृत ग्रंथों में रथ यात्रा का उल्लेख मिलता है। इनमें बताया गया है कि भगवान स्वयं हर वर्ष अपने भक्तों के बीच आते हैं ताकि उन्हें दर्शन का लाभ मिल सके।
छेरा पहानरा: जब राजा बनता है सेवक
पुरी रथ यात्रा की एक सबसे विशेष बात है गजपति राजा द्वारा की जाने वाली छेरा पहानरा पूजा।
गजपति राजा सोने का झाड़ू लेकर भगवान के रथ के आगे सफाई करते हैं। इससे यह भाव प्रकट होता है कि भगवान के सामने सब समान हैं राजा हो या प्रजा।
यह दृश्य बहुत ही भावुक कर देने वाला होता है और हर भक्त को विनम्रता का संदेश देता है।
गुंडिचा मंदिर: भगवान का दूसरा घर
गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की जन्म स्थान माना जाता है। रथ यात्रा में भगवान इसी मंदिर तक जाते हैं और वहाँ 9 दिन विश्राम करते हैं। इस दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है और फिर होती है बहुदा यात्रा, यानी वापसी यात्रा।
इस पूरी प्रक्रिया को देखना आत्मा को परमात्मा से जोड़ने जैसा अनुभव देता है।
संस्कृत श्लोक और रथ यात्रा का गूढ़ अर्थ
रथ यात्रा केवल एक शोभायात्रा नहीं है, बल्कि यह प्रतीक है उस जीवन यात्रा का, जहाँ आत्मा (रथ) में भगवान (प्रेरणा) विराजमान होते हैं।
“रथस्थं च जगन्नाथं पश्यन्ति भक्तिसंयुताः।
प्राप्नुवन्ति हरिं भक्त्या सगणं वैकुण्ठमेव च॥”
(जो भक्त भगवान को रथ पर बैठे हुए श्रद्धा से देखते हैं, वे स्वयं वैकुण्ठ को प्राप्त करते हैं।)
दुनियाभर के भक्तों की आस्था
रथ यात्रा केवल भारत तक सीमित नहीं है। आज लंदन, न्यूयॉर्क, मलेशिया, रूस जैसे देशों में भी यह यात्रा निकाली जाती है।
ISKCON के माध्यम से इस परंपरा को वैश्विक पहचान मिली है और लोग इसे “Festival of Chariots” के नाम से जानते हैं।
यह दिखाता है कि रथ यात्रा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति का परिचायक है।
रथ यात्रा को अद्भुत क्यों कहा जाता है?
- क्योंकि इसमें भगवान स्वयं भक्तों के बीच आते हैं
- यह परंपरा जात-पात, ऊंच-नीच से परे है
- इसमें राजा भी सेवक बनता है
- लकड़ी से बने रथों की वास्तु कला अद्वितीय है
- हर साल यह आयोजन वैसा ही होता है, जैसे हजारों साल पहले होता था
- और सबसे महत्वपूर्ण – यह भक्त और भगवान के बीच के अनकहे प्रेम को दर्शाता है
निष्कर्ष: चलिए तैयार हो जाएं एक दिव्य अनुभव के लिए
रथ यात्रा 2025 न सिर्फ देखने योग्य है, बल्कि अनुभव करने योग्य है।
यह वह समय होता है जब पुरी नगरी सिर्फ एक शहर नहीं रहती, बल्कि प्रभु का धाम बन जाती है।
हर आंख भगवान को देखना चाहती है, हर हाथ रथ की रस्सी पकड़ना चाहता है, और हर दिल — सिर्फ एक ही नाम जपता है — “जय जगन्नाथ!”
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