Bhartiya Darshan ka Samanya Parichaya भारतीय दर्शन का सामान्य परिचय दर्शन शब्द दृश धातु से बना है, जिसका तात्पर्य होता है देखना। दोस्तों ब्याबहार में हम अगर दर्शन का तात्पर्य देखना ले लें लेकिन मूल उसका जो अर्थ है वो देखना नहीं है ये बात का ध्यान आप को रखना है। ब्याबहार मैं हम किसीको कहते है की आप कहां जा रहे है? तो सामने वाला आदमी ये कहता है की में मंदिर दर्शन करने जा रहा हूं, या हम किसीको ये कहते है की क्या आप इनकी दर्शन कियें है। तो ये सब ब्याबहारिक रूप मैं दर्शन का शब्द हम आध्यात्मिक दृष्टि से लेते है, लेकिन यहां पर जब हम दर्शन शास्त्र पढ़ते है तो दर्शन का तात्पर्य बदल जाता है। जैसे की कहा जाता है व्युत्पति के अनुसार दर्शन का अर्थ है – दृश्यते अनेन इति दर्शनम् अगर आप देखोगे तो थोड़िसी व्याख्या यहां पर बदल गई है यहां पर इस व्युत्पत्ति के अनुसार दृश्यते अनेन इति दर्शनम् अर्थात जिसके द्वारा देखा जाए वह दर्शन है। यहां पर ये कहा जा रहा है दर्शन वह है जिसको हम आखों के द्वारा देख करके जिसके पीछे छुपे हुए दर्शन को जानने का अभ्यास करते है या फिर उसको जानने की कोशिश करते है वही दर्शन है। हम आखों के द्वारा देखते है तो आखों का विषय क्या है? दृश्य। जो हम आखों के द्वारा देखते है बह दर्शन है। क्या हमारे आंखे दर्शन हो जायेगी? नहीं ये सही नहीं है। अगर हम दृश्यते अनेन इति दर्शनम् के अनुसार देखेंगे तो इसका अर्थ यही है, लेकिन आपको इस दर्शन की बात यहां पर नहीं करनी है या फिर इस दर्शन की व्याख्या यहां पर नहीं करनी है।
भारतीय दर्शन का सामान्य परिचय दर्शन का तात्पर्य क्या है? (Bhartiya Darshan ka Samanya Parichaya)
यहां पर ये कहते है की दर्शन वह है जिसको हम आखों के द्वारा देख कर के जिसके पीछे छुपे हुए सत्य को जानने का अभ्यास करते हैं या फिर जानने का कोसिस करते हैं वही दर्शन है। बस इतना ही आपको समझना है हम जो दर्शन पढ़ते है इसका तात्पर्य यही है। हमारे आखों के समस्त घटने बाली घटना और उसके पीछे छुपे हुए सत्य को जानना यही दर्शन है। एक उदाहरण आपको देते हैं – जैसेकी कोई मनुष्य उसको मृत्यु प्राप्त हुआ, ब्याबहर में हम यहां पर कहेंगे दर्शन अर्थात हम उसको देख रहे है मतलब उसका दर्शन कर रहे हैं, लेकिन यहां पर ये दर्शन नहीं है। अब यहां पर जब हम तर्क वितर्क करे की इस मृत्यु किस प्रकार से हुई, ये मृत्यु का कारण क्या था, और क्या ये मृत्यु सबको होती है इसे कोनसे अवस्था है जिस दौरान इस मृत्यु होती है? और सबसे बड़ा इस मृत्यु को हम कैसे टाल सकते हैं? जब हमारे मन में इस प्रकार तर्क वितर्क आते हैं जब हम इस तर्क वितर्क को जान कर के सत्य को खोजते हैं उस मृत्यु कारण ढूंढते है उस मृत्यु को मिटाने कारण ढूंढते हैं तो बही दर्शन कहलाता है ये बात को आप ध्यान रखना हैं। मैक्सिम मुल्लर ने कहा है की दार्शनिक तो सभी हैं आपभी है और मैं भी हूं और जितने भी जीव जंतु है वह सब दार्शनिक हैं क्योंकि देखने के अर्थ में या फिर हम जानने की इच्छुक तो होते हीं है हमारे सामने जो कोई भी वस्तु है चाहे फिर हम पाश्चात्य दार्शनिक कहले या फिर पाश्चात्य लोगों को भी ले तो कुछ ना कुछ जानने की इच्छुक तो हम होते ही हैं तो फिर हम क्या दार्शनिक कहलाएं? जैसे की हमारे सामने कोई नई इलेक्ट्रॉनिक वस्तु आई तो उसके बारे मैं हम जानने की इच्छुक होते हैं, के ये वस्तु कैसे कार्य करता है, अगर ये कार्य करता है तो किस प्रकार से करता है इसके पीछे क्या इसको चलाने बाला क्या क्या चीजें है हम वहां पर ये सारे प्रश्न करते हैं और उनको जानने की इच्छुक भी होते हैं और आखिर कार हम जान भी लेते है। तो यहां पर क्या हम दार्शनिक कहलाएं? नहीं आपको यहीं पर फर्क जानना है यहां पर हम सामान्य रूप से दार्शनिक हुए लेकिन सफल दार्शनिक नहीं हुए। सफल दार्शनिक कब होंगे? जब हमारी सौध, जब हमारे रिसर्च ऐसे इसके पीछे लगे की हम मृत्यु को कैसे दूर कर सके, हम मोक्ष और कैसे अग्रोसर हो सके, हम दुख को कैसे दूर कर सके जब हम इसके बारे मैं रिसर्च करते है इसके बारे मैं सौध करते है तब जा करके हम सफल दार्शनिक कहलाते है। दार्शनिक सभी है लेकिन सफल दार्शनिक वह है जो दुख को दूर करने की उपाय ढूंढे। और आपको मालूम है हम जो भारतीय दर्शन पढ़ते है यहां पर तो हमारे भारतीय दर्शन का मुख्य बिसेसता है की दुखों को दूर करना आपको पाश्चात्य दर्शन मैं पढ़ने को नहीं मिलेगा इसी लिए भारतीय दर्शन और पाश्चात्य दर्शन मैं बहुत भिन्नता है। पाश्चात्य दर्शन मैं दुख दूर करने के मुस्किल ही कोई दर्शन होगा जो दुख को दूर करने की उपाय ढूंढेगा पर भारतीय दर्शन मैं कोई भी दर्शन उठाके देख लो हर एक दर्शन मैं दुख कैसे दूर किया जाए इसके बारे मैं चर्चा होती ही है मोक्ष की और कैसे अग्रसर हुआ जाए चार्वाक दर्शन को छोड़ करके सब मैं ब्याखा की गई है चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक। तो इस प्रकार से आपको यहां पर समझ ना है दर्शन जो शब्द है इसका तात्पर्य क्या है यहां पर इस व्युत्पत्ति के अनुसार और दृश धातु के अनुसार आपको बता दिया है। लेकिन मूल जो अर्थ है दर्शन का जो मूल अर्थ है वह सब आपको उपर मैं बता दिया है।
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पाश्चात्य अर्थ मैं दर्शन क्या है? (Bhartiya Darshan ka Samanya Parichaya)
पाश्चात्य अर्थ मैं जो दर्शन है हम उसको फिलॉसपी बोलते है। तो ध्यान देना है यूनानी शब्द है फिलॉसपी, इस मैं आपको ध्यान देना है इसमें २ शब्द है एक है फिलॉस और एक सोफिया तो जो फिलॉस होता है जो ये शब्द है इसका तात्पर्य होता है प्रेम और जो सोफिया शब्द है इसका तात्पर्य होता है प्रज्ञा अर्थात ज्ञान तो यहां पर आप देखेंगे तो पाश्चात्य फिलॉसपी शब्द फिलॉस ( प्रेम का ) + सोफिया (प्रज्ञा) से मिलकर बना है। और इसका तात्पर्य होगा इसलिए फिलॉसफी का शाब्दिक अर्थ है- बुद्धि प्रेम । या फिर ज्ञान की प्रति प्रेम भारतीय दर्शन और पाश्चात्य दर्शन मैं यही भिन्नता है। अगर साफ़ तौर पर देखा जाये तो भरतिया दर्शन और पाश्चात्य दर्शन के अंदर भिन्नता क्या है तो भारतीय दर्शन मैं दुःख दूर करने का उपाय अबस्य है लेकिन पाश्चात्य दर्शन मैं केबल सिर्फ ज्ञान के प्रति प्रेम, जो हम जानना चाहते है सिर्फ उसीके प्रति प्रेम।
इसके अलावा दुःख कैसे दूर किया जाये जो योग मार्ग या फिर हम मोक्ष की और कैसे अग्रसर हो और अपना जीबन कैसे सफल बना पाए ये पाश्चात्य दर्शन मैं नहीं हो पता है इसीलिए भारतीय दर्शन पाश्चात्य दर्शन से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है |
दर्शन शास्त्र क्या है? (Bhartiya Darshan ka Samanya Parichaya)
दर्शन शास्त्र वह ज्ञान है जो परम सत्य और सिद्धांतों, और उनके कारणों की बिबेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। हमारे दर्शन शास्त्र वह ज्ञान है, दर्शनों मैं वह ज्ञान भरा पड़ा है जो परम सत्य और कारणों की बिबेचना करता है। हम आपको पुर्ब मैं कहा है हमारे जितने भी दर्शन है सिर्फ चार्वाक दर्शन को छोड़ करके बाकि सभी मैं परम सत्य ज्ञान भरा पड़ा है। चाहे आप फिर आस्तिक दर्शन ले लो या फिर नास्तिक दर्शन ले लो उन सभी मैं हम को परम सत्य ज्ञान देखने को मिलता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। यहाँ पर यथार्थ का अर्थ है सत्य अगर हमें सत्य खोज करनी है सत्य की और जो हमें परख करनी है तो उसमें हमारे जो दर्शन है इसमें ये एक सार्थक सिद्ध होते है दृष्टिकोण रखते हैं।
भारतीय दर्शन मैं देखा जाये तो ६ दर्शन मुक्ष्य है – न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्व मीमांशा, उत्तर मीमांशा। पूर्व मीमांशा मतलब मीमांशा शास्त्र उत्तर मीमांशा मतलब वेदान्त शास्त्र इन सभी दर्शनों को अलग अलग ६ ऋषि ने लिखे। और ये ६ दर्शन को वैदिक दर्शन भी कहा जाता है वेदो को आधार मान कर वेदो के बाक्य को आधार मान कर ये ६ दर्शन लखे गए इसलिए ये ६ दर्शन को वैदिक दर्शन भी कहा जाता है। ये ६ दर्शन के अलावा और ३ दर्शन भी है उन सबको अवैदिक दर्शन है। ये ३ दर्शन को अवैदिक कहने का कारण ये है की ये ३ दर्शन वेदों को प्रमाण नहीं मानते, लेकिन प्रक्रिया बताते है ये सृस्टि की पूर्वजन्म की पुनर्जन्म की वो ऐसे ३ दर्शन मैं से २ दर्शन ऐसे है जो पूर्वजन्म को पुनर्जन्म को मानते है सृस्टि के रहस्य कों मानते है ऐसे २ दर्शन जैन और बौद्ध ये २ दर्शन मानते है। लेकिन फर्क इतना है की वेद के वाक्य को प्रमाण भुत ही है। वेद प्रमाण भुत ऐसा नहीं मानते है वेद प्रमाण भुत हो भी सकता है नहीं हो सकता है ऐसा उनका मानना है। चार्वाक दर्शन जो अंतिम दर्शन है वो रहस्य मैं नहीं मानता है वो भोगो मैं मंटा है। वो कहता है यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्। चार्वाक दर्शन ये कहता है जबतक जीबित हो मौज मजा करो और कुछ आने वाला नहीं है साथ मैं और इधर सब कुछ करलो भोग भोग लो और कुछ आने वाला नहीं है कियों की उसके बाद जन्म ही नहीं है। इसके बाद कुछ होता तब तो जन्म है, इसके बाद तो कुछ है ही नहीं तो ये सब कुछ नहीं है ये सब बेकार की बातें है। ये जो आत्मा परमात्मा सत्संग ये सब बेकार है उसका कोई फाइदा नहीं है। वस्तु गत ये क्या है ऐसा कुछ होता ही नहीं है शरीर पड़ जाए तो किसने कल देखा है ये भब्य तो अच्छा है तो आनेवाला समय किसने देखा है। और चार्वाक दर्शन ये भी बताता है बुद्धिपौरुषहीनानां जीविका धातृनिर्मिता। बुद्धि पौरुषेय के बिना लोग ऐसी बातें करते रहते है लोक है परलोक है। उसका जाबाज वैदिक दर्शन न्याय मैं और बाकि सब वैदिक दर्शन मैं इतना अछि तरह दिया गया है आप पढ़ेंगे तो पूरा का पूरा दर्शन समझ आएगा। तो ये ६ दर्शन है नास्तिक दर्शन है और आस्तिक दर्शन भी है पूर्वपक्ष भी है उत्तरपक्ष भी है। तो ऐसा नहीं है की उसमें कुछ लॉजिक नहीं है हर एक बात यहाँ लॉजिक्स से बताई गई है। तो अभी हमने दर्शन मैं ये बताया की दर्शन मतलब बहुत बड़ा बुद्धि का एक साक्ष्यात्कार के ऋषि मुनिओ ने जो बात कही है वो साक्ष्यात्कार वो आकर लिखा गया वो दर्शन शास्त्र है। इसके लिए गीता मैं स्वोयं श्री कृष्ण ने ही ज्ञान क्या है ऐसी बात बताई, किसको ज्ञान कहेंगे? तो भगवान श्री कृष्ण ने ये बताए अध्यात्मज्ञान नित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्। एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा।। दर्शन शास्त्र अध्यात्मज्ञान को उपपादक जो दर्शन शास्त्र है वही ज्ञान है। तत्व ज्ञान कराने वाला जो दर्शन शास्त्र है वो ज्ञान है और बाकि का सब अज्ञान है।ऋषिओं ने अलग अलग मार्गो से जो अनुभूति की, सृष्टि कैसे बनी, कौन चलता है, कैसे चलती है वो जो अनुभूतिओं से वाक्य निकले वो अलग अलग वाक्य है अलग अलग उसकी दिशा है अलग अलग उसका कहने का तात्पर्य है लेकिन पोहंचना एक ही है, वो सब का लक्ष्य है मुक्ति, ब्यक्ति को मोक्ष पाना।












