गोस्वामी तुलसीदास भारतीय संत-कवि और रामभक्त थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी अमर कृतियों से समृद्ध किया। वे 16वीं शताब्दी के महान संतों में से एक थे, जिन्होंने संस्कृत में उपलब्ध रामकथा को अवधी और ब्रज भाषा में प्रस्तुत कर जनसामान्य तक पहुँचाया। उनकी रचनाएँ न केवल भक्ति साहित्य में उच्च स्थान रखती हैं, बल्कि लोकजीवन, नीति और दर्शन का भी उत्कृष्ट समावेश करती हैं। (Tulsidas Life Literature and Legacy)
जन्म और प्रारंभिक जीवन
तुलसीदास का जन्म 1511 ई. (कुछ विद्वानों के अनुसार 1532 ई.) में उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव (चित्रकूट जिला) में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था।
चमत्कारिक जन्म और बाल्यकाल
कहा जाता है कि तुलसीदास का जन्म दिव्य घटनाओं से संपन्न था। जन्म के समय ही उन्होंने “राम” का उच्चारण किया और उनके दाँत भी जन्म से ही थे। इस अद्भुत घटना से उनके माता-पिता भयभीत हो गए और उन्होंने तुलसीदास को त्याग दिया।
पालन-पोषण और शिक्षा
उनका पालन-पोषण चुनिया नामक दासी ने किया और बाद में बाबा नरहरिदास ने उन्हें गोद लिया। नरहरिदास वैष्णव संप्रदाय के संत थे, जिन्होंने तुलसीदास को रामकथा, वेद, पुराण और संस्कृत का ज्ञान दिया।
वैवाहिक जीवन और संन्यास
तुलसीदास का विवाह रत्नावली से हुआ। रत्नावली से अत्यधिक प्रेम के कारण तुलसीदास सांसारिक जीवन में उलझ गए। जब उनकी पत्नी मायके गई हुई थीं, तो वे उफनती नदी पार करके उनसे मिलने पहुँचे। इस पर उनकी पत्नी ने कहा—
“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
जो होती श्रीराम में, तो काहे भव-भीत॥”
पत्नी के इन वचनों ने तुलसीदास के जीवन को बदल दिया। उन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागकर संन्यास ग्रहण किया और श्रीराम भक्ति में लीन हो गए।
तुलसीदास का साहित्य
तुलसीदास ने अपने जीवनकाल में अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख हैं—
1. रामचरितमानस (Ramcharitmanas)
2. विनय पत्रिका (Vinay Patrika)
3. दोहावली (Dohavali)
4. कवितावली (Kavitavali)
5. गीतावली (Gitavali)
6. हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa)
1. रामचरितमानस: तुलसीदास की अमर कृति
परिचय
रामचरितमानस हिंदी साहित्य की सर्वोत्तम कृतियों में से एक है। इसे “लोक-रामायण” भी कहा जाता है क्योंकि यह जनसामान्य की भाषा अवधी में लिखी गई है। इसमें भगवान श्रीराम के जीवन का विस्तृत वर्णन मिलता है, जिसमें भक्ति, धर्म और नैतिकता का अनुपम समावेश है।
रचनाकाल और स्थान
तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना 1574 ई. (संवत 1631) में वाराणसी के अस्सीघाट पर बैठकर आरंभ की और इसे चित्रकूट में पूर्ण किया।
रामचरितमानस का उद्देश्य
तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण को जनसामान्य तक पहुँचाने के उद्देश्य से इसे अवधी भाषा में लिखा। संस्कृत में लिखित वाल्मीकि रामायण केवल विद्वानों तक सीमित थी, जबकि रामचरितमानस ने इसे सभी के लिए सुलभ बना दिया।
रामचरितमानस की संरचना
रामचरितमानस को सात कांडों (अध्यायों) में विभाजित किया गया है, जो भगवान श्रीराम के जीवन के विभिन्न चरणों का विस्तृत वर्णन करते हैं—
1. बालकांड: राम का जन्म, ताड़का वध और सीता विवाह।
2. अयोध्याकांड: राम का वनवास और भरत की राम के प्रति भक्ति।
3. अरण्यकांड: सीता हरण और जटायु वध।
4. किष्किंधाकांड: बालि वध और सीता की खोज की योजना।
5. सुंदरकांड: हनुमान का लंका गमन और सीता से भेंट।
6. लंकाकांड: राम-रावण युद्ध और रावण वध।
7. उत्तरकांड: रामराज्य की स्थापना और श्रीराम का बैकुंठ गमन।
अन्य प्रमुख रचनाएँ
2. विनय पत्रिका (Vinay Patrika)
विनय पत्रिका तुलसीदास की प्रार्थना और भक्ति की गहरी अभिव्यक्ति है। इसमें श्रीराम के प्रति दीनता, समर्पण और आत्मनिवेदन का भाव प्रकट किया गया है।
3. दोहावली (Dohavali)
इसमें नीति, धर्म और भक्ति के विभिन्न पक्षों को दोहों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। तुलसीदास ने व्यवहारिक ज्ञान और आध्यात्मिक दर्शन का अद्भुत समावेश इसमें किया है।
4. कवितावली (Kavitavali)
कवितावली ब्रज भाषा में रचित काव्य है, जिसमें भगवान राम के विविध रूपों और लीलाओं का सुंदर वर्णन मिलता है।
5. गीतावली (Gitavali)
गीतावली अवधी भाषा में रचित गीत संग्रह है, जिसमें शृंगार और भक्ति रस का अनूठा मिश्रण है।
6. हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa)
हनुमान चालीसा तुलसीदास की सबसे लोकप्रिय रचना है, जिसमें हनुमानजी के गुण, पराक्रम और भक्ति का सजीव वर्णन किया गया है।
तुलसीदास की भाषा और शैली
तुलसीदास की भाषा अवधी और ब्रज थी, जिससे उनकी रचनाएँ आम जनता तक पहुँचीं। उनकी शैली में भक्तिरस, नीति और जीवन दर्शन का अद्भुत समावेश था।
भाषा की विशेषताएँ
1. सरलता और प्रवाह: तुलसीदास की भाषा सरल और प्रभावशाली है।
2. भक्तिरस और ओजस्विता: उनके शब्दों में भक्ति और ओज का अद्भुत मेल है।
3. सजीव चित्रण: उन्होंने प्रकृति, भावनाओं और चरित्रों का सजीव चित्रण किया है।
4. उदात्त नैतिकता: उनके काव्य में नीति, धर्म और मर्यादा का उत्कृष्ट संदेश मिलता है।
तुलसीदास की विरासत
तुलसीदास का साहित्य धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने रामभक्ति आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाया और भक्ति साहित्य को एक नई दिशा दी।
1. धार्मिक प्रभाव (Religious Influence)
रामचरितमानस हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ बन गया। आज भी घर, मंदिर और धार्मिक आयोजनों में इसका पाठ किया जाता है।
2. सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Influence)
रामचरितमानस के आधार पर भारत में रामलीला का आयोजन होता है, जो आज भी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है।
3. सामाजिक प्रभाव (Social Impact)
तुलसीदास ने जाति-पाति और सामाजिक भेदभाव को नकारते हुए भक्ति मार्ग को सबके लिए खोल दिया।
4. साहित्यिक प्रभाव (Literary Influence)
तुलसीदास की रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया और आगे आने वाले भक्ति कवियों को प्रेरित किया।
तुलसीदास की मृत्यु
तुलसीदास ने 1623 ई. (कुछ मतानुसार 1680 ई.) में वाराणसी के अस्सीघाट पर शरीर त्याग दिया। उनकी समाधि आज भी वहीं स्थित है।
निष्कर्ष
गोस्वामी तुलसीदास केवल एक कवि नहीं, बल्कि युगद्रष्टा संत थे। उन्होंने समाज को आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी और भक्ति साहित्य को नया आयाम दिया। उनकी कृतियाँ आज भी भक्ति, प्रेम, धैर्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।