Shri Gopal Kavacham | श्री गोपाल कवचम्

Shri Gopal Kavacham एक प्राचीन हिंदू धार्मिक ग्रंथ है, जो भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है। यह कवच विशेष रूप से श्री कृष्ण की उपासना करने वाले भक्तों के बीच अत्यधिक प्रसिद्ध है और इसे आधिकारिक रूप से “गोपाल कवच” के नाम से जाना जाता है। इसे विभिन्न पुराणों और ग्रंथों में वर्णित किया गया है, लेकिन सबसे प्रमुख रूप से इसे “भगवद गीता” और अन्य वैष्णव ग्रंथों से जुड़ा हुआ माना जाता है।

गोपाल कवच का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक सुरक्षा प्रदान करना है। इसे भगवान श्री कृष्ण की आशीर्वाद प्राप्ति, पापों से मुक्ति और जीवन में समृद्धि पाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह कवच व्यक्ति को हर प्रकार के संकट और शत्रु से रक्षा करने में सक्षम बताया जाता है।

इस कवच में भगवान कृष्ण के विविध रूपों का वर्णन होता है, जिसमें उनके दिव्य शक्तियों के माध्यम से व्यक्ति को सुरक्षा और आशीर्वाद मिलता है। गोपाल कवच का पाठ करने से व्यक्ति को न केवल भौतिक सुरक्षा मिलती है, बल्कि यह उसकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी लाभकारी माना जाता है। इसे नियमित रूप से और श्रद्धा भाव से पढ़ने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

Shri Gopal Kavacham

श्रीगोपालकवचम्

श्रीगणेशाय नमः ॥

श्रीमहादेव उवाच ॥
अथ वक्ष्यामि कवचं गोपालस्य जगद्गुरोः ।
यस्य स्मरणमात्रेण जीवनमुक्तो भवेन्नरः ॥ १ ॥

श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि सावधानावधारय ।
नारदोऽस्य ऋषिर्देवि छंदोऽनुष्टुबुदाह्रतम् ॥ २ ॥

देवता बालकृष्णश्र्च चतुर्वर्गप्रदायकः ।
शिरो मे बालकृष्णश्र्च पातु नित्यं मम श्रुती ॥ ३ ॥

नारायणः पातु कंठं गोपीवन्द्यः कपोलकम् ।
नासिके मधुहा पातु चक्षुषी नंदनंदनः ॥ ४ ॥

जनार्दनः पातु दंतानधरं माधवस्तथा ।
ऊर्ध्वोष्ठं पातु वाराहश्र्चिबुकं केशिसूदनः ॥ ५ ॥

ह्रदयं गोपिकानाथो नाभिं सेतुप्रदः सदा ।
हस्तौ गोवर्धनधरः पादौ पीतांबरोऽवतु ॥ ६ ॥

करांगुलीः श्रीधरो मे पादांगुल्यः कृपामयः ।
लिंगं पातु गदापाणिर्बालक्रीडामनोरमः ॥ ७ ॥

जग्गन्नाथः पातु पूर्वं श्रीरामोऽवतु पश्र्चिमम् ।
उत्तरं कैटभारिश्र्च दक्षिणं हनुमत्प्रभुः ॥ ८ ॥

आग्नेयां पातु गोविंदो नैर्ऋत्यां पातु केशवः ।
वायव्यां पातु दैत्यारिरैशान्यां गोपनंदनः ॥ ९ ॥

ऊर्ध्वं पातु प्रलंबारिरधः कैटभमर्दनः ।
शयानं पातु पूतात्मा गतौ पातु श्रियःपतिः ॥ १० ॥

शेषः पातु निरालम्बे जाग्रद्भावे ह्यपांपतिः ।
भोजने केशिहा पातु कृष्णः सर्वांगसंधिषु ॥ ११ ॥

गणनासु निशानाथो दिवानाथो दिनक्षये ।
इति ते कथितं दिव्यं कवचं परमाद्भुतम् ॥ १२ ॥

यः पठेन्नित्यमेवेदं कवचं प्रयतो नरः ।
तस्याशु विपदो देवि नश्यंति रिपुसंधतः ॥ १३ ॥

अंते गोपालचरणं प्राप्नोति परमेश्र्वरि ।
त्रिसंध्यमेकसंध्यं वा यः पठेच्छृणुयादपि ॥ १४ ॥

तं सर्वदा रमानाथः परिपाति चतुर्भुजः ।
अज्ञात्वा कवचं देवि गोपालं पूजयेद्यदि ॥ १५ ॥

सर्व तस्य वृथा देवि जपहोमार्चनादिकम् ।
सशस्रघातं संप्राप्य मृत्युमेति न संशयः ॥ १६ ॥

॥ इति नारदपंचरात्रे ज्ञानामृतसारे चतुर्थरात्रे श्रीगोपालकवचं संपूर्णम् ॥

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श्री गोपाल कवचम् हिंदी अर्थ सहित

अथ वक्ष्यामि कवचं गोपालस्य जगद्गुरोः।
यस्य स्मरणमात्रेण जीवनमुक्तो भवेन्नरः॥

हिंदी अर्थ:
अब मैं जगत के गुरु श्री गोपाल का कवच बताने जा रहा हूँ।
इस कवच का केवल स्मरण करने मात्र से व्यक्ति जीवन के सभी बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि सावधानावधारय।
नारदोऽस्य ऋषिर्देवि छंदोऽनुष्टुबुदाह्रतम्॥

हिंदी अर्थ:
हे देवी! ध्यानपूर्वक सुनो। मैं इस कवच को विस्तार से बताता हूँ।
इस कवच के ऋषि नारद हैं और इसका छंद अनुष्टुप है।

देवता बालकृष्णश्र्च चतुर्वर्गप्रदायकः।
शिरो मे बालकृष्णश्र्च पातु नित्यं मम श्रुती॥

हिंदी अर्थ:
इस कवच के देवता बालकृष्ण हैं, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (चतुर्वर्ग) प्रदान करते हैं।
बालकृष्ण मेरे सिर और कानों की सदैव रक्षा करें।

नारायणः पातु कंठं गोपीवन्द्यः कपोलकम्।
नासिके मधुहा पातु चक्षुषी नंदनंदनः॥

हिंदी अर्थ:
नारायण मेरे गले की रक्षा करें।
गोपियों द्वारा पूजित भगवान मेरे गालों की रक्षा करें।
मधु को मारने वाले श्रीकृष्ण मेरी नाक की, और नंदनंदन (नंदजी के पुत्र) मेरी आँखों की रक्षा करें।

जनार्दनः पातु दंतानधरं माधवस्तथा।
ऊर्ध्वोष्ठं पातु वाराहश्र्चिबुकं केशिसूदनः॥

हिंदी अर्थ:
जनार्दन मेरे दाँतों की रक्षा करें।
माधव मेरे निचले होंठ की रक्षा करें।
वाराह (वराह अवतार) मेरे ऊपरी होंठ की, और केशिसूदन (केशी का वध करने वाले) मेरी ठोड़ी की रक्षा करें।

ह्रदयं गोपिकानाथो नाभिं सेतुप्रदः सदा।
हस्तौ गोवर्धनधरः पादौ पीतांबरोऽवतु॥

हिंदी अर्थ:
गोपिकाओं के स्वामी श्रीकृष्ण मेरे हृदय की रक्षा करें।
नाभि की रक्षा सेतुप्रद (राम रूप) करें।
गोवर्धन धारण करने वाले भगवान मेरे हाथों की और पीले वस्त्र धारण करने वाले श्रीकृष्ण मेरे पैरों की रक्षा करें।

करांगुलीः श्रीधरो मे पादांगुल्यः कृपामयः।
लिंगं पातु गदापाणिर्बालक्रीडामनोरमः॥

हिंदी अर्थ:
मेरी उँगलियों की रक्षा श्रीधर करें।
कृपा से भरे भगवान मेरी पैरों की उँगलियों की रक्षा करें।
गदा धारण करने वाले और बाललीलाओं से मन को मोहने वाले भगवान मेरी आत्मा (लिंग) की रक्षा करें।

जग्गन्नाथः पातु पूर्वं श्रीरामोऽवतु पश्र्चिमम्।
उत्तरं कैटभारिश्र्च दक्षिणं हनुमत्प्रभुः॥

हिंदी अर्थ:
जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण) पूर्व दिशा की रक्षा करें।
पश्चिम दिशा की रक्षा श्रीराम करें।
उत्तर दिशा में कैटभ का वध करने वाले भगवान रक्षा करें, और दक्षिण दिशा में हनुमानजी की कृपा से सुरक्षा हो।

आग्नेयां पातु गोविंदो नैर्ऋत्यां पातु केशवः।
वायव्यां पातु दैत्यारिरैशान्यां गोपनंदनः॥

हिंदी अर्थ:
आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) दिशा की रक्षा गोविंद करें।
नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा की रक्षा केशव करें।
वायव्य (उत्तर-पश्चिम) दिशा की रक्षा दैत्यों के शत्रु करें।
ईशान्य (उत्तर-पूर्व) दिशा की रक्षा गोपियों के प्रिय नंदन करें।

ऊर्ध्वं पातु प्रलंबारिरधः कैटभमर्दनः।
शयानं पातु पूतात्मा गतौ पातु श्रियःपतिः॥

हिंदी अर्थ:
ऊपर की ओर प्रलंबासुर का वध करने वाले श्रीकृष्ण रक्षा करें।
नीचे की ओर कैटभ का नाश करने वाले रक्षा करें।
सोते समय शुद्ध आत्मा वाले भगवान मेरी रक्षा करें।
यात्रा करते समय लक्ष्मीपति (भगवान विष्णु) रक्षा करें।

शेषः पातु निरालम्बे जाग्रद्भावे ह्यपांपतिः।
भोजने केशिहा पातु कृष्णः सर्वांगसंधिषु॥

हिंदी अर्थ:
निर्जन और निर्बल स्थिति में शेषनाग रक्षा करें।
जागने की स्थिति में जल के स्वामी (भगवान विष्णु) मेरी रक्षा करें।
भोजन करते समय केशी का वध करने वाले श्रीकृष्ण रक्षा करें।
मेरे शरीर के प्रत्येक अंग और जोड़ों की रक्षा श्रीकृष्ण करें।

गणनासु निशानाथो दिवानाथो दिनक्षये।
इति ते कथितं दिव्यं कवचं परमाद्भुतम्॥

हिंदी अर्थ:
गणना करते समय रात्रि के स्वामी (चंद्रमा) रक्षा करें।
दिवस के स्वामी (सूर्य) दिन के अंत में रक्षा करें।
हे देवी! यह परम अद्भुत और दिव्य कवच मैंने तुम्हें बताया है।

यः पठेन्नित्यमेवेदं कवचं प्रयतो नरः।
तस्याशु विपदो देवि नश्यंति रिपुसंधतः॥

हिंदी अर्थ:
जो व्यक्ति इस कवच को प्रतिदिन श्रद्धा और पवित्रता के साथ पढ़ता है,
उसके सभी संकट और शत्रुओं के षड्यंत्र शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।

अंते गोपालचरणं प्राप्नोति परमेश्र्वरि।
त्रिसंध्यमेकसंध्यं वा यः पठेच्छृणुयादपि॥

हिंदी अर्थ:
जो इस कवच का पाठ त्रिकाल संध्या (सुबह, दोपहर, शाम) या किसी एक संध्या समय करता है,
वह अंत में श्री गोपाल के चरणों में स्थान प्राप्त करता है।

तं सर्वदा रमानाथः परिपाति चतुर्भुजः।
अज्ञात्वा कवचं देवि गोपालं पूजयेद्यदि॥

हिंदी अर्थ:
चतुर्भुज भगवान रमानाथ (विष्णु) उसकी सदैव रक्षा करते हैं।
परंतु यदि कोई इस कवच को जाने बिना श्री गोपाल की पूजा करता है।

सर्व तस्य वृथा देवि जपहोमार्चनादिकम्।
सशस्रघातं संप्राप्य मृत्युमेति न संशयः॥

हिंदी अर्थ:
तो उसका सभी जप, हवन, और पूजा निष्फल हो जाते हैं।
वह गंभीर दोषों का भागी बनता है और अंततः मृत्यु को प्राप्त करता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।

गोपाल कवच: एक दिव्य सुरक्षा कवच

गोपाल कवच हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र ग्रंथ है, जिसे भगवान श्री कृष्ण की उपासना में उच्च स्थान प्राप्त है। यह कवच विशेष रूप से उन भक्तों के लिए है जो भगवान कृष्ण से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। गोपाल कवच को सिर्फ एक मंत्र या शाब्दिक प्रार्थना नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली सुरक्षा कवच के रूप में देखा जाता है, जो व्यक्ति को न केवल भौतिक संकटों से बचाता है, बल्कि उसे आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है।

गोपाल कवच का महत्व

“गोपाल” का अर्थ है भगवान कृष्ण, और “कवच” का अर्थ है सुरक्षा कवच। इस कवच का मुख्य उद्देश्य भगवान श्री कृष्ण की आशीर्वाद प्राप्त करना और जीवन को संकटमुक्त बनाना है। यह कवच न केवल शारीरिक रक्षा प्रदान करता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक सुरक्षा भी देता है। गोपाल कवच का पाठ व्यक्ति को हर प्रकार की नकारात्मकता, शत्रुओं और विपत्तियों से बचाता है।

गोपाल कवच का स्रोत

गोपाल कवच को विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उल्लिखित किया गया है, लेकिन इसका प्रमुख स्रोत विष्णु पुराण और श्रीमद्भागवत जैसे ग्रंथ माने जाते हैं। यह कवच भगवान कृष्ण के दिव्य रूपों और शक्तियों का संकलन है, जो भक्तों को उनके जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं और संकटों से मुक्ति दिलाता है। विशेष रूप से, यह कवच तब बहुत प्रभावी माना जाता है जब व्यक्ति इसे शुद्ध मन और विश्वास के साथ पढ़ता है।

गोपाल कवच का संरचना

गोपाल कवच में भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपों का उल्लेख है, जैसे कि उनके बाल रूप (गोपाल), उनके महापुरुष रूप, और उनके वैश्णव रूप। यह कवच भगवान कृष्ण की दिव्य शक्तियों का चित्रण करता है और इस विश्वास को पुष्ट करता है कि जो व्यक्ति इसे सच्चे मन से पाठ करता है, उसे भगवान श्री कृष्ण का संरक्षण प्राप्त होता है।

कवच में मुख्यतः 7 श्लोक होते हैं, जो भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपों के बारे में बताते हैं। हर श्लोक में कृष्ण के मंत्रों का उच्चारण करने से भक्तों को मानसिक शांति और शारीरिक सुरक्षा मिलती है।

गोपाल कवच का लाभ

1. दुष्ट शक्तियों से रक्षा: गोपाल कवच उन भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी है जो मानसिक तनाव, शारीरिक पीड़ा या किसी शत्रु के भय से परेशान हैं। यह कवच उन्हें शत्रुओं और दुष्ट शक्तियों से रक्षा करता है।

2. आध्यात्मिक उन्नति: गोपाल कवच का नियमित रूप से जाप करने से भक्त की आस्था और भक्ति मजबूत होती है, जिससे उसकी आत्मिक उन्नति होती है।

3. सुख-शांति का आगमन: यह कवच व्यक्ति के जीवन में शांति, सुख और समृद्धि लाने में मदद करता है। यह जीवन के हर पहलू में भगवान श्री कृष्ण की कृपा को आकर्षित करता है।

4. पापों का नाश: गोपाल कवच को पढ़ने से व्यक्ति के पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। यह आत्मा को शुद्ध करने और भगवान के करीब लाने में सहायक होता है।

गोपाल कवच का विधिपूर्वक पाठ

गोपाल कवच का पाठ करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए:

शुद्ध स्थान और शुद्ध मन: यह कवच केवल शुद्ध मानसिकता और स्थान पर ही पढ़ना चाहिए। वातावरण को पवित्र रखने के लिए साफ सफाई का ध्यान रखें।

सप्ताह में एक बार पाठ करें: अगर संभव हो तो सप्ताह में कम से कम एक बार गोपाल कवच का पाठ करें। इससे मानसिक शांति और स्थिरता बनी रहती है।

नियमित जाप: गोपाल कवच का जाप मनुष्य की मानसिक स्थिति को स्थिर करता है और उसे भूत-प्रेत और नकारात्मक प्रभावों से बचाता है।

निष्कर्ष

गोपाल कवच केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि एक दिव्य सुरक्षा कवच है, जो भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से भरा हुआ है। इसे विश्वास और श्रद्धा के साथ पढ़ने से जीवन में अनेक प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति का जीवन दिव्य कृपा से परिपूर्ण होता है। अगर आप जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की तलाश में हैं, तो गोपाल कवच को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना आपके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

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