श्री दशावतार स्तोत्रम् | Shri Dashavatara Stotram

Shri Dashavatara Stotram | श्री दशावतार स्तोत्रम्

भारतीय संस्कृति और धर्म के मूल में भगवान विष्णु के दस अवतारों का विशेष स्थान है। श्री दशावतार स्तोत्र, जो जयदेव रचित गीत गोविंद का हिस्सा है, इन अवतारों की महिमा का संगीतमय वर्णन करता है। यह केवल एक धार्मिक स्तुति नहीं है, बल्कि मानवता के विकास, धर्म की स्थापना, और अधर्म के विनाश का प्रतीक है।

भगवान विष्णु के ये दस अवतार किसी विशेष युग या समस्या के समाधान के लिए प्रकट हुए। चाहे वह जलप्रलय में संसार की रक्षा का कार्य हो या सत्य और धर्म की स्थापना के लिए संघर्ष, दशावतार हमें यह सिखाते हैं कि हर परिस्थिति में ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

इस स्तोत्र की विशेषता यह है कि यह भगवान के अवतारों को केवल चमत्कारिक घटनाओं के रूप में नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक और नैतिक संदेश के रूप में प्रस्तुत करता है। मत्स्य से लेकर कल्कि तक, हर अवतार हमें यह सिखाता है कि ईश्वर का कार्य न केवल ब्रह्मांड का संचालन है, बल्कि अधर्म के विनाश और धर्म की पुनर्स्थापना भी है।

इस स्तोत्र की सरस और लयबद्ध भाषा इसे सरलता से स्मरणीय बनाती है, जिससे यह न केवल भक्तों के लिए पूजनीय है, बल्कि काव्य प्रेमियों के लिए भी एक अनुपम रचना है।

Shri Dashavatara Stotram

श्री दशावतार स्तोत्रम् (Shri Dashavatara Stotram)

प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम् ।
विहितवहित्रचरित्रमखेदम् ।।
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ।।1।।

क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे ।
धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ।।
केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे ।।2।।

वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना ।
शशिनि कलंकलेव निमग्ना ।।
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ।।3।।

तव करकमलवरे नखमद्भुतश्रृंगम् ।
दलितहिरण्यकशिपुतनुभृंगम् ।।
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ।।4।।

छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन ।
पदनखनीरजनितजनपावन ।।
केशव धृतवामनरूप जय जगदीश हरे ।।5।।

क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम् ।
स्नपयसि पयसि शमितभवतापम् ।।
केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे ।।6।।

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम् ।
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम् ।।
केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे ।।7।।

वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम् ।
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम् ।।
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ।।8।।

निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम् ।
सदयह्रदयदर्शितपशुधातम् ।।
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ।।9।।

म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम् ।
धूमकेतुमिव किमपि करालम् ।।
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ।।10।।

श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम् ।
श्रृणु सुखदं शुभदं भवसारम् ।।
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ।।11।।

इति श्री जयदेव विरचितं दशावतारस्तोत्रं संपूर्णम्

श्री दशावतार स्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित

प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम् ।
विहितवहित्रचरित्रमखेदम् ।।
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ।।1।।

हे भगवान श्री केशव! जैसे एक नौका बिना किसी कठिनाई के जल में डूबी हुई वस्तु को बाहर निकालकर उसे सुरक्षित स्थान पर लाती है, वैसे ही आपने प्रलय के समय जल में अवतीर्ण होकर वेदों को अपने साथ धारण किया और उन्हें फिर से जीवन प्रदान किया। यह आपके महान कार्य का प्रतीक है, आपकी जय हो!

क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे ।
धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ।।
केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे ।।2।।

हे केशव! आपने कूर्म (कछुआ) रूप में पृथ्वी को अपनी पीठ पर धारण कर उसे सुरक्षित किया। आपकी विशाल पीठ पर यह पृथ्वी स्थिर हुई, और आपकी पीठ पर लगे व्रण, जो आपके बल का प्रतीक हैं, पूरी दुनिया को एक अद्वितीय पहचान देते हैं। जय हो!

वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना ।
शशिनि कलंकलेव निमग्ना ।।
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ।।3।।

हे भगवान, वराह रूप में आपने पृथ्वी को अपनी नथ से उठाया। इस रूप में आप चन्द्रमा के समान, जो अपने भीतर तम और कलंक लिए होते हुए भी प्रकट होता है, पृथ्वी को अपने दांतों में धारण किए हुए हैं। इस महान कार्य के लिए आपकी महिमा अमिट है।

तव करकमलवरे नखमद्भुतश्रृंगम् ।
दलितहिरण्यकशिपुतनुभृंगम् ।।
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ।।4।।

हे नरसिंह अवतार! जब आपने अपनी नखों से हिरण्यकशिपु को नष्ट किया, तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे एक भंवरे ने पुष्प को अपने बल से नष्ट कर दिया। आपके नखों के तेज ने दुष्टों का नाश किया और धर्म की पुनः स्थापना की। आपकी जय हो!

छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन ।
पदनखनीरजनितजनपावन ।।
केशव धृतवामनरूप जय जगदीश हरे ।।5।।

हे वामन! आपने तीन छोटे-छोटे पगों में संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और बलि राजा को हराया। आपकी यह याचना, जो बहुत छोटी सी दिखती है, पूरे ब्रह्मांड की शक्ति से परिपूर्ण थी। आपकी जय हो, हे अद्भुत वामन देव!

क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम् ।
स्नपयसि पयसि शमितभवतापम् ।।
केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे ।।6।।

हे भृगुपति! आपने परशुराम रूप में क्षत्रिय कुल का नाश कर उस रक्तमय जल से पृथ्वी को पवित्र किया। आपने धर्म की पुनर्स्थापना की और संसार के दुखों को दूर किया। आपकी महिमा अपरंपार है, जय हो!

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम् ।
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम् ।।
केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे ।।7।।

हे राम! आपने रावण को हराया और उसकी क्रूरता को समाप्त किया। आप न केवल एक योद्धा थे, बल्कि धर्म और न्याय के प्रतीक भी बने। आपके वीरता से भरे कार्यों ने पूरे संसार को प्रेरणा दी। जय हो!

वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम् ।
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम् ।।
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ।।8।।

हे हलधर! आपने बलराम रूप में अपनी शाही शक्ति को प्रदर्शित किया। आपके श्वेत रूप में जैसे मेघ अपनी पूरी शोभा से दिखते हैं, वैसे ही आपके अद्वितीय रूप ने पृथ्वी पर शांति और सुरक्षा का संदेश दिया। आपकी जय हो!

निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम् ।
सदयह्रदयदर्शितपशुधातम् ।।
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ।।9।।

हे बुद्ध! आपने बुद्ध रूप में संसार को नया दृष्टिकोण दिया। आपने यज्ञों की विधियों के खिलाफ जाकर पशु बलि की निंदा की और सत्य और अहिंसा का प्रचार किया। आपकी उपदेशों ने मानवता को एक नई दिशा दी। जय हो!

म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम् ।
धूमकेतुमिव किमपि करालम् ।।
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ।।10।।

हे कल्कि! आपने म्लेच्छों का नाश करते हुए एक भयंकर रूप धारण किया। आपने पूरे संसार को अपने तेज से आलोकित किया और पापियों का संहार किया। आपकी महिमा कभी न मिटने वाली है।

श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम् ।
श्रृणु सुखदं शुभदं भवसारम् ।।
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ।।11।।

हे भगवान! आप दशावतारों के रूप में संसार की हर कठिनाई का समाधान लेकर आए। आपके प्रत्येक रूप ने पृथ्वी को फिर से एक नई दिशा दी। आपकी यह स्तुति हम सभी के लिए सुख और शांति का कारण बने, इस आशीर्वाद के साथ हम आपकी महिमा का गान करते हैं।

इति श्री जयदेव विरचितं दशावतारस्तोत्रं संपूर्णम्

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श्री दशावतार स्तोत्रम् क्या है?

श्री दशावतार स्तोत्र भारतीय धर्म, दर्शन, और साहित्य का एक ऐसा अनमोल रत्न है, जो भगवान विष्णु के दस अवतारों की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र न केवल धार्मिक ग्रंथों में अपनी जगह रखता है, बल्कि इसका सांस्कृतिक और दार्शनिक महत्व भी अत्यंत गहरा है।

अद्वितीयता की झलक

इस स्तोत्र की सबसे अनोखी बात यह है कि यह जीवन के विकास की गाथा को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है। विष्णु के अवतार केवल दैवी शक्तियों के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन स्थापित करने का भी संदेश देते हैं। यह स्तोत्र यह सिखाता है कि हर कठिनाई के पीछे ईश्वर का एक गुप्त उद्देश्य छिपा होता है, जो हमें जीवन की गहराई को समझने में मदद करता है।

दशावतार: मानवता का क्रमिक विकास

1. मत्स्य अवतार: जल से जीवन का प्रारंभ।

2. कूर्म अवतार: जीवन का स्थायित्व।

3. वराह अवतार: पृथ्वी पर जीवन का विकास।

4. नृसिंह अवतार: अज्ञान और अधर्म का अंत।

5. वामन अवतार: सीमाओं को स्थापित करने का संदेश।

6. परशुराम अवतार: अन्याय के विरुद्ध संघर्ष।

7. राम अवतार: आदर्श और मर्यादा का पालन।

8. कृष्ण अवतार: प्रेम और नीति का संतुलन।

9. बुद्ध अवतार: करुणा और अहिंसा का प्रतीक।

10. कल्कि अवतार: भविष्य में अधर्म का अंत।

आधुनिक दृष्टिकोण

श्री दशावतार स्तोत्र को केवल भक्ति के माध्यम से देखना इसकी गहराई को सीमित करना होगा। आज के युग में इसे एक “आध्यात्मिक विज्ञान” के रूप में भी देखा जा सकता है, जो जीवन के हर चरण में मार्गदर्शन देता है। हर अवतार एक अद्वितीय संदेश देता है, जैसे कि जलवायु संकट के समय में “मत्स्य अवतार” पर्यावरण की रक्षा का संदेश देता है।

दशावतार और योग

योग और ध्यान के दृष्टिकोण से, दशावतार हमारे भीतर के दस विभिन्न मानसिक और आध्यात्मिक अवस्थाओं का प्रतीक हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, मत्स्य हमारे भीतर के बिखरे हुए विचारों को एकत्रित करने का संकेत है। कृष्ण हमारे आनंद और प्रेम के स्रोत का प्रतीक है।

दशावतार स्तोत्रम का महत्व

दशावतार स्तोत्रम, जो जयदेव के गीत गोविंद का एक अंश है, भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों की स्तुति में रचित एक अनुपम काव्य है। इसका महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भक्त को गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक संदेश भी प्रदान करता है।

1. भगवान विष्णु की महिमा का गान

दशावतार स्तोत्रम भगवान विष्णु के उन रूपों की महिमा का वर्णन करता है, जिनके माध्यम से उन्होंने समय-समय पर धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश किया। यह स्तोत्र भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि जब भी संसार में संकट आता है, ईश्वर अवतार लेकर उसकी रक्षा करते हैं।

2. आध्यात्मिक मार्गदर्शन

दशावतार स्तोत्रम यह सिखाता है कि जीवन में आने वाले हर संकट का समाधान संभव है। भगवान विष्णु के अवतार हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलते रहना चाहिए।

3. भक्त और भगवान का संबंध

इस स्तोत्र का पाठ भक्त और भगवान के बीच एक गहरा आध्यात्मिक संबंध स्थापित करता है। यह स्तुति यह अहसास कराती है कि ईश्वर सदा अपने भक्तों के साथ हैं और उनके लिए किसी भी रूप में अवतरित हो सकते हैं।

4. मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा

दशावतार स्तोत्रम के लयबद्ध और काव्यात्मक पाठ से मन को शांति मिलती है। संस्कृत के शुद्ध उच्चारण और भावपूर्ण अर्थ मानसिक संतुलन प्रदान करते हैं। यह स्तोत्र व्यक्ति के मन, वाणी, और आत्मा को शुद्ध करता है।

5. धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग

दशावतार स्तोत्रम का पाठ विशेष पर्वों, जैसे वैकुंठ एकादशी और गुरुवार व्रत, पर किया जाता है। यह धार्मिक अनुष्ठानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और जीवन में सुख-समृद्धि लाने में सहायक माना जाता है।

6. संस्कृति और साहित्य का संवर्धन

जयदेव का यह स्तोत्र भारतीय काव्य और संगीत का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी लयबद्धता और गेयता इसे साहित्यिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण बनाती है।

निष्कर्ष

श्री दशावतार स्तोत्र केवल एक स्तुति नहीं है, बल्कि यह एक गहन ग्रंथ है जो हमारे जीवन और ब्रह्मांड की गहरी सच्चाईयों को उजागर करता है। इसके अध्ययन और चिंतन से हम न केवल आध्यात्मिक बल प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि जीवन में सही दिशा भी पा सकते हैं।
यह दृष्टिकोण अपने आप में अनोखा है क्योंकि यह परंपरागत व्याख्या से परे आधुनिक जीवन और विज्ञान से जुड़ता है।

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